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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२३ सू०१ ज्योतिप्केपु जीवानामुत्पत्तिः ५४९ नवमे सातिरेकपल्योपमा स्थितिर्भवति । सवेधश्च सर्वत्र स्त्र स्व भवाप्रेक्षया स्थित्यः सुसारेणैव भवद्विकयोः कार्य इति, शेषं पूर्ववदेवेति । 'एए सत्त गमगा" एते समगमका प्रथमास्त्रयों गमकाः३, मध्यमगमत्रयस्थाने एकः१, चरमास्तु त्रयः ३, एवं क्रमेणः सप्तैव गमकाः भवन्ति पञ्चमपष्ठगमयोश्चतुर्थेऽन्तर्भावादिति । । . “अथ संख्यातवर्पायुष्कसंक्षिपग्नेन्द्रियान् ज्योतिष्कपूत्पादयन्नाह-'जा संखेजबासाउयः' इत्यादि। 'जइ संखेनवासाउयसन्निपंचिंदियतिरिक्खनोणिएहितो उपवज्जति' हे भदन्त । यदि संख्येयवर्पायुष्कसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य है। परन्तु ज्योतिष्क की सप्तम गम में जघन्य और उत्कृष्ट दोनों प्रकार की स्थिति होती है। अष्टम गम में पल्पोपम के आठवें भाग रूप स्थिति होती है और नौवें गम में सातिरेक पल्योपम की स्थिति होती है। संवेध सर्वत्र अपने २ भयकी अपेक्षा से स्थिति के अनुसार ही दोनों भवों की स्थिति को संमिलिन करके करना चाहिये। बाकी को सय कथन पूर्व में कहे गये अनुसार ही है। 'एए सत्त गमगर । इस प्रकार से ये सात गम हैं । पहिले के तीन गम, मध्यम के तीन । गमों में से १ चौथा गम, और अन्त के तीन गम इस क्रम से सात ही गम होते हैं क्योंकि पांचवें गम का और छठे गम का अन्तर्भाव चतुर्थ गम में हो जाता है। ___ अय संख्यात वर्ष की आयुबाले संज्ञो पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों का ज्योतिष्क देवों में उत्पाद का कथन सूत्रकार करते हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'जइ संखेज्जवासाउयसन्निपंचिंदियतिरिक्ख. અને ઉકણ બેઉ પ્રકારની સ્થિતિ હોય છે. આઠમા ગમમાં પપમના આઠમા ભાગ રૂપ રિથતિ હોય છે અને નવમા ગમમાં સાતિરેક પાપ મની સ્થિતિ હોય છે. સવેધ બધે પિત પિતાના ભાવની અપેક્ષાથી સ્થિતિના પ્રમાણે જ બને ભવની સ્થિતિ મેળવીને કહેવું જોઈએ. બાકીનું બીજ सघ ४थन ५७ ह्या प्रमाणे । छे. 'एए सत्त गमगा' मारीत मा सात ગમે છે. પહેલાના ૩ ત્રણ ગમ, મધ્યના ત્રણ ગમેમાંથી એક ચોથે ગમ અને છેલ્લા ૩ ગમે એ કમથી સાત જ ગમ હોય છે. કેમકે પાંચમા અને છઠ્ઠા ગમને અંતર્ભાવ ચેથા ગામમાં થઈ જાય છે.
હવે સૂવકાર સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યો. નિકને તિષ્ક દેવમા ઉત્પાદનું કથન કરે છે. એમાં ગૌતમસ્વામી બે
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