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________________ प्रमचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२३ ०१ ज्योतिप्केपु जीवानामुत्पत्तिा ४४७ भवति पल्योपमाष्टभागप्रमाणायुपो यौगलिकतिरश्च पञ्चमगमे पष्ठगमे च पल्यो. पमाष्टभागममाणमेवायुभवति न स्वस्माद् बृहत्तरायुष्के जीवः समुत्पद्यते, इति पूर्व प्रदर्शितमेव । 'सो चेव अप्पणा उक्कोसकालहिइओ जाओ' स एव-असंख्यातवर्षी मुष्कसंक्षिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीव एव आत्मना-स्वयम् उत्कृष्ट कालस्थितिका मातो भवेत् तदा-'सो चेव ओहिया वत्तब्धया' सैव औधिकी वक्तव्यता- अत्रापि मणितव्या 'नवरं ठिई जहन्नण तिन्नि पलिभोवमाई' नवरम्-केवलमौधिकगमा पेक्षया सप्तमगमे स्थितौ वैलक्षण्यं यदन स्थितिजघन्येन त्रीणि पल्योपमानि तथाहै। क्योंकि यही पर-चतुर्थ गम में ही-पञ्चम एवं षष्ठ गम का अन्त. भौव हो जाता है क्योंकि पल्यापम के आठवें भाग प्रमाण की आयु वाले युगलिक तिर्यश्च की पञ्चम गम में और षष्ठ गम में पल्योपमके आठवें भाग प्रमाण ही आयु होती है। अत: वह अपने से वृहत्तर आयु वाले ज्योतिष्क देव में उत्पन्न नहीं होता है ऐसा पहिले प्रकट किया ही जा चुका है। 'सो चेव अप्पणा उनकोसकालविहओ जाओ' जब वह असंख्यात वर्षांयुष्क संज्ञीपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्धोनिक जीव उत्कृष्ट स्थिति को लेकर उत्पन्न होता है तब 'सो चेच ओहिया वत्तव्यया' वही औधिकीवक्तव्यता यहां पर भी कहनी चाहिये। 'नवरं ठिई जहन्नेणं तिन्नि पलि ओवमाई' केवल औधिक गम की अपेक्षा इस सप्तम गम में स्थिति में भिन्नता ऐली है कि यहां स्थिति जघन्य से तीन पल्पोपमही વાળાને આ એકજ ગમ છે. કેમકે અહિયાં જ-એટલે કે ચેથા ગામમાં જ પાંચમા અને છા ગમનો અંતર્ભાવ થઈ જાય છે. કેમકે પલ્યોપમના આઠમા ભાગ પ્રમાણુની આયુષ્યવાળા યુગલિક તિર્યંચની પાંચમાં અને છઠ્ઠા ગામમાં ૫૫મના આઠમા ભાગ પ્રમાનું જ આયુષ્ય હોય છે. તેથી તે પિતાનાથી વધારે આયુષ્યવાળા તિષ્ક દેવમાં ઉત્પન્ન થતા નથી. એ પ્રમાણે કહી જ દીધું છે. 'सो चेव अप्पणा उक्कोस कालट्रिइ भो जाओ' न्यारे ते मसभ्यात पनी આયુષ્યવાળે સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિવાળો જીવે ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિથી ઉત્પન્મ थाय छे. त्यारे 'सा चेव ओहिया वत्तव्यया' या माघि सायन मलियां ५५ अj नय. 'नवरं ठीई जहन्नेणं तिन्नि पलिओवमाई' qण मौधि ગમની અપેક્ષાએ આ સાતમા ગમમાં સ્થિતિમાં એ પ્રમાણે જુદા પાડ્યું છે કે महिया स्थिति धन्यथा नर पक्ष्य।५मनी छ. तथा 'सक्कोसेण वि तिन्नि
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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