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________________ भगवतीसरे १४२ . 'सो चेत्र अप्पणा जहन्न कालहिइभो जाओ' स एक-अपंख्यात वर्षायुष्कः संशिपश्च. न्द्रियतिर्यग्योनिक जीव एव यदि स्वात्मना-स्वयमेव जघन्यकालस्थितिकः सन् जातः समुत्पन्नो भवेत् तदा-'जहन्नेणं अट्ठमागपलिश्रोत्रमट्ठिएम उववन्नो' जघन्येनाष्टभागपल्योपस्थितिकेषु उत्पन्नः। अस्मिन् चतुर्थगमे जघन्य कालस्थितिकोऽसंख्यात. घर्षायुरोधिकेषु ज्योतिष्कदेवेपूत्पन्ना, तनासंख्यातायुषो यद्यपि पल्योपमाष्टभागार पम का है और 'उक्कोसेणं' उत्कृष्ट से वह 'चत्तारि पलि भोवमाई पातसयलहरललभहियाई एक लाख वर्ष अधिक चार पल्योपम फा है। ऐसा यह तृतीय गम है। ... 'सो चेव अप्पणा जहणकालहिहो जाओ' वही असंख्यति घर्ष की आयुनाला संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियग्योनिक जीव जय स्वयं जवन्य काल की स्थिति को लेकर उत्पन्न होता है और वह यदि ज्योतिष्क देदों में उत्पन्न होने के योग्य होता है तो ऐसी स्थिति में वह 'जह ग्लेणं अट्ठभागपलिओवमहिइएसु उवचनो' जघन्य से एक पल्य के मोठवें भाग प्रमाण स्थिति वाले ज्योतिष्कों में उत्पन्न होता है और 'उस्कोसेण वि अभागपलिओवपट्टिइएस्तु उववन्नो' उत्कृष्ट से भी वह पल्यापम के आठवें भाग प्रमाण स्थिति वाले ज्योतिष्कों में उत्पन होता है । इस चतुर्थ गम में जघन्य काल की स्थिति वाला असंख्यात घायु जीय औधिक ज्योतिषक देवों में उत्पन्न हुमा कहा गया है। सो वहां असंख्यातवर्ष को आयु वोले की जघन्य आयु यद्यपि पल्यो। पलिओवमाइ वासप्तयसहस्समभहियाई' से काम १५ अधि: या पक्ष्याપમાને છે. એ રીતે આ ત્રીજો ગમ કહ્યો છે. ૩ 'सो चेव अप्पणा जहण्णकालद्विइओ जाओ' असण्यात वर्षनी आयुष्य વાળે એ સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિવાળો જીવ જ્યારે પિતે જઘન્ય કાળની स्थितिथा उत्पन्न वान योग्य छ, तत सी स्थितिमा त 'जहण्णेणं अटुभाग पलिओवमढिइएसु उववन्नो' न्यथा ते मे पढ़योपमना मामा भागनी स्थितियाणा स्याति हेवामा पनि थाय छे भने 'उक्कोसेण वि अटुभागपलिओवमटिइएसु उववन्नो' Lथी ५२१ त पक्ष्यापभाना मामा नाम પ્રમાણની સ્થિતિવાળા તિષ્ક દેવેમાં ઉત્પન્ન થાય છે. આ ચેથા ગામમાં જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળે અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળે જીવ ઓધિક તિષ્ક દેવામાં ઉત્પન્ન થયાનું કહ્યું છે તે ત્યાં અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ વાળાનું જઘન્ય આયુષ્ય જે કે પોપમના આઠમાં ભાગથી પણ હીનતા
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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