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भगवती ४४ निगयोनिक प उन्पचन्ते नो ए केन्द्रिय-दीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियतिर्यग्योनिकेश्य उन्ययन किन्तु पश्चेन्द्रियनियर योनिकेन्य उत्पद्यन्ते, तत्रापि-संक्षिपञ्चेन्द्रियसिवायोनिरम्य उत्पादने, 'नो अमन्त्रिपबिंदियतिरिक्वनोणिरहितो उववज्जति'नो -न न अमंसिपश्चेन्द्रियविर्यग्यानिके र आगत्योत्पद्यन्ते । 'जइ सम्मिपंचिदियतिरिपाजोगिपर्टिनो उज्जति' हे भदन्त ! यदि संज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्ययोनिकेभ्य आगत्य
पोनिकदेवेषु उत्पद्यन्ते तदा-'कि संखेनवाप्साउयमनिपंचिदियतिरिक्खजोणिपहिलो उपवजाति' किं संख्येयवर्षायुःकसं ज्ञपश्चन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य आगत्योत्प. ननेन्द्रिय नियंत्रों से आकर के उत्पन्न होते हैं न चौइन्द्रियतियंत्रों से माजके उत्पन्न है और न असंजी पञ्चेन्द्रियतिर्यश्चों से आकरके उत्पन्न होते हैं। किन्तु संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों से आकरके उत्पम होते हैं। यही यात 'भेओ जायमन्नि पंबिंदियतिरिक्ख जोणिएहितो वय
जंति, नी अमन्नि पंचिंदियतिरिकाव जोणिपहितो उववज्जति' इस मनपाट मारा समलाई गई है। ___ अब गौतम प्रनु से ऐसा पूछते हैं-'जह सन्निपंचिंदियतिरिक्ख. जोणिपहिनो उयनि ' हे भदन्त । यदि ज्योतिष्कदेव संज्ञी पत्रेन्द्रिय नियमोनिक जीवों से आकर के उत्पन्न होते है तो कि संखेज्जवासा. उगमन्निपंचिंदियनिरिग्वजोगिहिनो उबवज्जति' क्या वे संख्यातं મા નિવાથી આવીને ઉત્પન્ન થતા નથી. તેમજ બે ઇંદ્રિયવાળા નિલ' મા ને પ ઉત્પન થતા નથી, તથા ત્રણ ઈદ્રિયવાળા વિ ભી આવીને પ ઉત્પન થતા નથી. અને ચાર ઈદ્રિયવાળા તિય
241 पान ५: 3.५४! पता नयी तथा अससी यथेन्द्रिय तिय"21भ ने पा, न यता नयी, ५२'तु २४il ५ यन्द्रिय तिय यामाधी
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-'जा सन्ति पनिंदिया rai ! नि' २ प -याति पय: ન્દ્રિય નિગ્ન ન કમાવી આને પન્ન થાય છે, તે परामा भिदियनिरिश्मनोनिहियो नया गि' ते