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________________ ૩૦૯ भगवती सूत्रे परन्तु अवगादनांशे वैलक्षण्यं वक्ति- 'नवरे' इत्यादिना । 'नवरं ओगाहणा गोयमा एगे भवधारणिज्जे सरीरए' नवरं केवलं शरीरावगाहना हे गौतम । एकं भवधारणीयं शरीरम्, हे गौतम ग्रैवेयक देवानामेकं भवधारणीयमेव शरीरं भवति किन्तु वैकियशरीरं न भवति कल्पातीतदेवानामुत्तरये कियशरीरस्याभावात् 'सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं' सा भवधारणीयशरीरस्यावगाहना जघन्येनाऽङ्गुलस्यासंख्येयभागम् 'उकोसेणं दो रयणीओ' उत्कर्षेण द्वे रत्नी, उत्कृष्टतः शरीरावगाहना हस्तन्यममाणा भवतीत्यर्थः ' संठाणं एगे भवधारणिन्जे सरीरे' संस्थानम् एकं भवधारणीयमेव शरीरं भवति, नोत्तरबैं क्रियं कल्पातीतदेवानाम्यचरवेक्रियशरीराभावात् 'नो चेत्र णं वेउन्निए' इत्यादि वचनात् । ' से समचउरंस जानना चाहिये । परन्तु अवगाहनांश में जो विलक्षणता है उसे सूत्रकार ने 'नवरं ओगाहणा गोयमा ! एगे भवधारणिज्जे सरीरए' इस सूत्र द्वारा प्रकट किया है। इसके द्वारा यह समझाया गया है कि है गौतम ! ग्रैवेयक देवों के एक भवधारणीय ही शरीर होता है वैक्रिय शरीर नहीं होता है क्योंकि फल्पातीत देवों के उत्तर वैक्रिय शरीर का अभाव होता है। अतः 'सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं ' वह भवधारणीय शरीर की अवगाहना जघन्य से अंगुल के असंख्यातवे भाग प्रमाण होती है और 'उक्कोसेणं दो रयणीओ' उत्कृष्ट से वह दो रत्नि प्रमाण होती है-दो हाथकी होती है 'संठाणं एगे भवधारणिज्जे सरीरे' संस्थान उनके एक धारणीय ही शरीर होता है। उत्तर वैकिय शरीर नहीं होता है। क्योंकि कल्पातीत देवों के उत्तर वैक्रिय शरीर का अभाव होता है 'नो चेत्र णं वेव्त्रिये' ऐसा सिद्धान्त સમજવું, પરંતુ અવગાહનાના અંશમાં જે જુદાપણું આવે છે. તે સૂત્રકારે 'नवर ओगाहणा गोयमा । एगे भवधारणिज्जे सरीरए' मा सूत्र द्वारा प्रगट કરેલ છે આ સુત્રથી એ સમઝાવ્યું છે કે-હૈ ગૌતમ ! ત્રૈવેયકદેવોને એક ભવધારણીય શરીર જ હોય છે. વૈક્રિય શરીર હેતુ' નથી. કેમકે કલ્પાतीत हेवाने उत्तर वैश्यि शरीरने। अलाव होय छे थी 'सा जहन्नेणं अंगु लस्स असंखेन्जइभागं ' ते अवधारणीय शरीरनी भवगार्डना धन्यथी मांगजना असंख्यातमा आग प्रभाणुनी होय छे भने 'उक्कोसेणं दो रयणीओ' ઉત્કૃષ્ટથી તે એ રત્નિપ્રમાણુ હાય છે.-ખાધેટ મૂઠિવાળા એ હાથ પ્રમાણુની होय छे, 'संठाणं एगे भवधारणिज्जे सरीरे' तेगोनु संस्थान शो लवधारष्ट्रीय શરીર જ હાય છે. ઉત્તર વૈક્રિય શરીર હાતું નથી. કેમકે-પપાતીત देवाने उत्तर वैश्यि शरीरना सलाव होय छे. 'नो चेवणं वेडन्निए'
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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