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________________ 'प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२० वृ०५ मनुष्येभ्यः पं. तिरश्चामुत्पातः २९७ ऽभ्यधिकानि 'उकोसेण वि तिनि पलिओवमाई पुषकोडीए अभहियाई उत्कः णांऽपि त्रीणि पल्योपमानि पूर्वकोटयाऽभ्यधिकानि एवइयजाव करेजा' एतावन्तं यावत् कुर्यात् एतावत्कालं पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकगति सेवेत तथा-एतावत्काल पर्यन्त गमनागमने कुर्यादिति नवमो गमः ९ ॥१०॥ अथ मनुष्येभ्यः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकमुत्पादयन्नाह-'जइ मणुस्सेहितो' इत्यादि। ___ मूलम्-जइ मणुस्लहितो उववज्जति किं सन्निमणुस्सहिंतो० असन्निमणुस्सेहितो०? गोयमा! सन्निमणुस्सेहितो वि उवव. जंति असन्निमणुरुहितो वि उववज्जंति। असन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए से णं भंते! केवइयकालहिइएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा! जहन्नणं अंतोमुहत्तटिइएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडीआउएसु उववज्जा । लद्धी से तिसु वि गमएसु जहेव पुढविक्काइएसु उववजमाणस्स। संवेहो जहा एत्थं चेव असन्निपंचिंदियस्स मज्झिमेसु तिसु गमएसु तहेव निरवसेसो भाणियबो। जइ सन्निमणुस्सेहितो उपवनंति किं संखेज्जवासाउयसन्निमणुस्सेहिंतो उववज्जंति असंखेज्जवासाउयसन्निसणुस्सेहितो उत्कृष्ट से भी वह एक पूर्वकोटि अधिक लीन पल्यो य का है 'एवढयं जाव करेज्जा' इस प्रकार से वह संज्ञी पश्चन्द्रिय निर्यग्धोनिक जीव हनने काल तक उस पञ्चेन्द्रियनियंग्यानिक गति का सेवन करता है, और इतने ही काल तक वह उस गलि में गमनागमन करता है। ऐसा यह नौवां गम है (९) ॥स. ४॥ पूरा भवित्र पस्योपभनी छे. एवइयं जाव करेजा' मारी सभी પંચેન્દ્રિયતિર્યંચ યોનિ છે જીવ આટલા કાળ સુધી એ સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિયતિર્યંચ જેનિક ગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તે એ ગમનાગમન કરે છે. એ રીતે આ નવમો ગમ કહ્યો છે , કા
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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