SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीपत्रे स्थित्यनुबन्धौ कथिती तथा तया इह प्रकरणेऽपि स्थित्यनुबन्धौ ज्ञातव्याविति । 'एवं णव वि गमगा उवजुनिऊण भाणियबा' एवम्-प्रथमगमवदेव नवमान्ता नवापि गमका उपयुज्य वक्तव्याः। कियत्पर्यन्तमित्याह-एवं' इत्यादि, एवं जाव छटपुढवी' एवं यावत् पष्ठ पृथिवी एवं रत्नप्रभाशरामभावदेव पष्ठ: पृथिवीतमापर्यन्तं नवापि गमका विरच्य तत्र तत्र प्रथमादिनवान्ता नवापि गमका वक्तव्या इति । 'गवरं ओगाहणा लेस्सा ठिई अणुवंधो संवेहो य. जाणियवा' नवरम्- केवलं शरीरावगाहना लेश्यास्थित्यनुवन्धसंवेधाश्च भिन्ना भिन्नास्तत्तस्पृथिव्यामवगन्तव्या इति । 'अहे सत्तमपुढवी नेरइए णं भंते !' अधः सप्तमी पृथिवी नैरयिकः खलु भदन्त ! 'जे भविए पंचिदियतिक्खिनोणिएमु उपज्जितए' यो भव्यः पञ्चन्द्रियतियग्योनिकेपूत्पत्तुम् ‘से णं भंते ! के वक्ष्यकालटिइएसु उववज्जेज्जा' स ग्वल मदन्त ! कियत्कालस्थितिकेयु उत्पधेत इति प्रश्नः, उसी प्रकार से वे यहां पर भी कहना चाहिये। 'एवं णव वि गमगा उवमुंजिऊण भाणियचा.' इस प्रकार से प्रथम गम से लेकर, नौवें गम तक के नौ गम ६ छट्ठी पृथिवी तक उपयोगलगाकर कहना चाहिये 'वरं ओगाणा लेस्सा ठिई अणुबंधो संवेहो य जाणियन्या' परन्तु विशेषता केवल इतनी है कि शरीरावगाहना, लेश्या, स्थिति, अनुबन्ध और कायसंवेध इनको लेकर यहां पर भिन्नता है। अर्थात् ये सब उन २ पृथिवियों में भिन्न हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं'अहे सत्तमपुढवीनेरहए णं भते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणि एसु.उववज्जित्तर' हे भदन्त ! अधः सप्तम पृथिवी का नैरयिक जो पंचेन्द्रियतियश्चों में उत्पन्न होने के योग्य हैं। 'सेणं भंते ! केवइयकाल. मे शत महियां पy ४ा नेय. 'एवं णव वि गमगा उबजु जिऊण भाणियव्वा' मा रीते परसा गभथी' मारलान नवमा सम सुधाना न गमा ही पृथ्विी सुधा ४ नये. 'णवर ओगाहणा लेस्सा लिई अणुबधो सवेहो य जाणियन्वा' मा ४थनमा विशेषपार ७ सयु छ :-शरीरनी અવગાહના, વેશ્યા, સ્થિતિ, અનુબંધ અને કાયસાધના સંબંધમાં અહિયાં જુદા પણું છે. અર્થાત્ આ બધા તે તે પશ્વિમાં જુદા જુદા રૂપે છે. ' - गौतमयामी प्रभुने मेयु पूछे छे -अहे सत्तमपुढवीनेरइए णं भाते ! जे भविए पंचिं दियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए' है भगवन् અધઃ સપ્તમી પૃથ્વીને નરયિકે કે જે પંચેન્દ્રિય તિર્યમાં ઉત્પન્ન થવાને योग्य छ. से गं भवे । केवइयकालदिइएसु उववज्जेज्जा' मा पनी
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy