SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सू०६ नागकुमारेभ्यः समुत्पातादिनि०. १६१ सोहम्मकप्पोवगवेमाणियदेवेहितो उबवज्जति' किं सौधर्मकल्पोपपन्नकवैमा निकदेवेभ्य आगत्य उत्पद्यन्ते अथवा 'जाव अच्चुयकप्पोवगवेमाणियदेवेहितो उववनंति' यावद् अच्युत कल्पोपपन्नकवैमानिकदेवेभ्य आगत्य उत्पधन्ते इति प्रश्नः। भगवानाह 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सोहम्मकप्पोवगवेमाणियदेवेहितो उववज्जति ईमाणकप्पोवगवेमाणियदेवेहितो उबवज्जति' सौधर्मकल्पोपपन्नकवैमानिकदेवेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते, तथा ईशाणकल्पोपपन्नवैः मानिकदेवेभ्य आगत्य पृथिवीकायिकजीवा उत्पद्यन्ते, 'जो सणकुमारवेमाणियदेवेहिंतो उववज्जंति जाव णो अच्चुयकप्पोरगवेमाणियदेवेहितो उववज्जति' नो न वा सनत्कुमारवैमानिकदेवेभ्य आगत्य उत्पधन्ने यावत् नो-नैव अच्युतकल्पोउत्पत्ति होती है तो क्या 'सोहम्मकप्पोचगवे. उवबज्जति, सौधर्मक पल्पोपपन्नक वैमानिक देवों से आकर के उत्पत्ति होती है ? या 'जाव अच्चुयकप्पोवगवेमाणियदेवेहितो उवधज्जति' यावत् अच्युत कल्योपपन्नक वैमानिक देवों से आकरके उत्पत्ति होती है. इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! हे गौतम ! 'सोहम्मकप्पोवंगवेमा. णियदेवेहितो उवधज्जति ईसाणकप्पोवगवेमाणियदेवेहितो उवव. ज्जति' पृथिवीकायिक जीयों की उत्पत्ति सौधर्मकल्पोपपन्नक वैमानिक देवों से आकरके होती है और ईशान कल्प पन्नक देवों से आकर के भी होती है, पर 'णो सर्णकुमारवेमाणियदेवेहिंतो उववज्जति, सनस्कुमार वैमानिक देवों से आकरके पृथिवीकायिक जीवों की उत्पत्ति नहीं होती है, यावत 'णो अच्चुयकप्पोवगवेमाणियदेवेहितो उववज्जति' अच्युतकल्पोपपत्रक वैमानिक देवों से भी आकरके उनकी हिंतो उववज्जति' सौधम पा५५-न भानि माथी मावी पथाय छ १ 'जाव अच्चुयकप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतो उववज्जति' यावत् अव्युत ४६५पन्न વૈમાનિક દેશમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે छ है-'गायमा ! है गौतम! 'सोहम्मकयोवगवेमाणियदेवेहिता उववजंति પૃથ્વીકાયિક જીવની ઉત્પત્તિ સૌધર્મ કહ૫૫નક વૈમાનિક માંથી આવીને થાય છે અને ઈશાન કપનક વૈમાનિક દેવોમાંથી આવીને પણ થાય છે. 'णा सणंकमारवेमाणियदेवहितो उववज्जति' सनभार पैमानि वामांथा मावाने शिवयि लयोनी सत्पत्ति यती नथी. यावत् णो अच्चुयक पोवगवेमाणियदेवेहितो! उववज्जति' भयुत ४८या५यन्न वैमानि४ हेवामाथी भ० २१
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy