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न्तीति । 'तिन्नि अन्नाणा भयगाए' त्रीणि अज्ञानानि भजनया ये असुरकुमारदेवा असंज्ञिभ्य आगत्य समुत्पद्यन्ते तेपामसुकुमाराणामपर्याप्तावस्थायां विभङ्ग ज्ञान स्वाभावात् ये तु असंज्ञिभ्यो नागच्छन्ति धरणारास्तेषां विभङ्गज्ञानसद्भावादज्ञानेषु भजना कथितेति । 'जोगो विविहो वि' योगो मनोवाक्कायात्मक सिविधोऽवि९ । 'उवजोगो दुविहो वि' उपयोगः साकारानाकाराख्यो द्विविधोऽपि भवतीति १० । 'चत्तारि सन्नाओ' चतस्रः संज्ञा आहारनिद्राभयमैथुनारूपा भवन्ति इति ११ । 'चत्तारि कसाया' चत्वारः कषायाः क्रोधमानमायालोभाख्या भवन्ति १२ ।
से मतिज्ञान श्रुतज्ञान और अपविज्ञान होते हैं, ये तीन ज्ञान उनमें सम्यग्दृष्टि देवों में होते हैं । 'तिन्नि अन्नागा भरणार' तथा भजना से तीन अज्ञान होते है, क्योंकि जो असुरकुमार देव असंज़ियों से आकरके उत्पन्न होते हैं उनके विभङ्गज्ञान अपर्याप्तावस्था में नहीं होता है, तथा जो अरकुमार असंजियों से नहीं आते हैं उनके विभग ज्ञान का सद्भाव होता है, इमीलिये यहां अज्ञानों में भजना कही गई है । योंगवार में - ' जोगो तिथि वि' इनके तीनों प्रकार का योग होता है, मनोयोग, वचनयोग और कागयोग ऐसे तीनों योग होते हैं । उपयोग द्वार में 'उपभोगो दुत्रिो वि' इनके साकार उपयोग और अनाकार उपयोग ऐसे दोनों प्रकार के उपयोग होते हैं। संज्ञीद्वार में 'चत्तारि सन्नाओ' इनके आहार, भय, मैथुन एवं परिग्रह ये चारों प्रकार की संज्ञाएँ होती हैं । कषाय द्वार में इनके 'चत्तारि फसाया ' क्रोध, मान, माया और लोभ ये वा कपायें होती है । इन्द्रियद्वार અને અવધિજ્ઞાન એ ત્રણ જ્ઞાન હાય છે. આ ત્રણ જ્ઞાન તે સમ્યગ્ દૃષ્ટિ દેવેશમાં હોય છે. કેમકે જે અસુરકુમાર દેવ અસન્નિયામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે. તેને અપર્યાપ્ત અવસ્થામાં વિલંગજ્ઞાન હાતુ' નથી. તથા જે અસુરકુમારી અનિચેામાંથી આવતા નથી તેઓને વિભગજ્ઞાન હાય छे. तेथी अडिया अज्ञानाभां अन्नाथी धुं छे. योगद्वारसां 'जोगा तिविहोवि' तेमाने मनोयोग वयनयोग गने आययोग मे भो प्रहारना योग होय छे. उपयोगद्वारसां 'उबओगो दुविहो वि' तेमाने साजर ઉપયાગ, અને અનાકાર ઉપચેગ તેમ બન્ને પ્રઠારના ઉપચેગા હોય છે. भ्रंशी द्वारभां-'चत्तारि सन्नाओ' तेभने आहार लय, मैथुन अने परिग्रह मे थार संज्ञाओ। होय हे उपायद्वारसां 'चत्तारि कसाया' डोध, भान भाया, भने ब्रोल से न्यार ४षाया होय छे. द्रिय द्वारभां तेथे 'पंचिदिया' यांचे