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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सू०५ मनुष्यजीवानामुत्पत्तिनिरूपणम् १२३ इति । संख्येयवर्षायुष्कवतामेव पृथिवीकायिकेपूत्पत्तिर्भवति न तु-कथमपि असंख्येयवर्षायुष्कवताम् उत्पतिर्भवति पृथिवीकायिकेषु इत्यर्थः । 'जइ संखेज्जवासाउयसन्निमणुस्सेहितो उववज्जति' यदि संख्येवर्षायुष्कसंक्षिमनुष्येभ्य उत्पद्यन्ते तदा 'किं पज्जत्तसंखेनवालाउयसन्निमणुस्सेहिती उववज्जति' कि पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्येभ्य आगत्योत्पद्यन्ते अथवा 'अपज्जत्तसंखेनवासाउयसन्निमणुस्सेहितो उववज्जंति' अथवा अपर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्कसंझिमनुः ज्येभ्य आगत्य उत्पद्यन्ते इति प्रश्नः । भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निमणुस्से हितो उपवज्जति' पर्याप्तसंख्येयअसंख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी मनुष्यों से आकरके जीव पृथिवी. कायिकों में उत्पन्न नहीं होता है, क्योंकि संख्यात वर्ष की आयु. वालों का ही पृथिवीकायिकों में उत्पाद होता है असंख्यात वर्ष की आयुवालों का वहां उत्पाद किसी भी प्रकार से नहीं होता है, अब गौतम पुनः प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'जइ संखज्जवासाउयसन्नि मणुस्से हितो उववज्जति' हे भदन्त ! यदि संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी मनुष्यों से आकर के जीव का पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होता है तो 'कि पज्जत्तसंखेज्जवालाउयसन्निमणुस्सेहितो उववज्जति' क्या वह पर्याप्त संख्यात वर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों से आकरके वहां उत्पन्न होता है ? या 'अपज्जत्त संखेज्जवासाउयसन्निमणुस्से हितो उपवज्जति अपर्याप्त संख्यात वर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों से आकर के यहां उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! है गौतम ! 'पज्जत्तसंखेजवासाउय सन्निमणुस्सेहितो उथवज्जति' अपज्जत्तसंखेज्जवासाउय ખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા સંજ્ઞી મનુષ્યમાંથી આવીને જીવ પૃથ્વીકાયિકમાં ઉત્પન્ન થતા નથી કેમકે સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળાઓને જ પૃથ્વીકા યિકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળાઓને ત્યાં કોઈ પણ રીતે ઉત્પાત થતા નથી. वे गीतभस्वामी प्रभु से पूछे छे -'जइ सखेज्जवासाउयसनिमन. स्सेहितो उववज्जति' मापन ने सभ्यात वर्षनी भायुष्याणा सभी मनु. માંથી આવીને જીવન પૃથ્વીકાયિકમાં ઉત્પાત-ઉત્પત્તિ થાય છે, તે જ पज्जनसंखेज्जवासाउयसन्निमणुस्खे हितो उनवज्जति' शु त पर्यास सभ्यात વર્ષની આયુષ્યવાળા સંસી મનુષ્યમાંથી આવીને ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે કે 'अपज्जत्तसंखेज्जवोसाउयसन्नमणुस्से हितो उववज्जति' मर्यात मन्यात વર્ષની આયુષ્યવાળા સંસી મનુષ્યમાથી આવીને ઉત્પન્ન થાય छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ-'गोयमा 18 गौतम ! 'पज्जत्तमलेन
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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