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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.३ २०१ नागकुमारदेवस्योत्पादादिकम् ६३७ जोणिए गं मं!' परोप्नसंजयरावसायुकप पचन्द्रियनियन्योनिका खल्ल भदन्त ! 'जे नविए नागढमारेसु उपातिए' यो भन्यो-मचिनु योग्यो नागकुमारेत्सत्तुम् , 'से णं भने !' स ख मदन ! केवडयकालहिएम् उचत्रम्जे ब्जा' कियकालस्थितिकेषु उत्पद्येत किगत्कास्थितिकनागकुमारावासे तेषां पर्याप्जायानिविशेषावतां तिर्यग्योनिशानामुमति मातीनिमग्नः । जयन्यतो दशवर्षसहवास्थितिकेतकर्पतः माविरकसागरोपमस्थितिकेय नागभारावास ते तिर्यग्योनिका समुत्पबन्ने इनि उचरपक्षाशयः१ । नुवानिदनाह-एवं जडेव असुरचमारेस उवज्जमापास इतनया नदेव वि गमु वि गमरमु एवं यथैव अनुजगारे उपयमानस्य वक्तव्यता नथैद हापि नवन्नपि गमकेषु नथेत्र वक्तव्यता इतन्या ! 'नवरं नागधारहिं सवेच जाणेना' नवरं नागमारजोणिए णं भंते ! हे भदन्त ! पर्याप्त संख्यानवीयुक संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यायोनिक जीव 'जे भविए नागहमारेम' किजो नागनमारों में उत्पन्न होने के योग्य है 'सेणं भंते ! केवड्यशालदिपु वह शितन काल की स्थितिघाले नागकुमारों में उत्पन्न होना है ? इनके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम! बह जघन्य से दश हजार वर्ष की स्थिति वाले नागकुमारों में और उत्कृष्ट से देशान दो पल्योरम की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है, यही बात अनिदेश से पवं जहेब असुरकृमारतु उववजमाणस्स बत्तब्धया नहेच इह विणवसु विगमएस्तु' इस सूत्र द्वारा मूत्रकारनं प्रकट की है. इसमें यह समझाया गया है कि जिन प्रकार से असुरकुमारों में उलद्यमान जीव की चक्लन्यता कही गई है-उसी प्रकार की चक्लन्यता यहां पर भी नौ गमका में वाचारमन्निचिदिनिरिखनजोगिए गं मंदे ! वन् ५ न्यान नायकाय नी यन्दियनिय 'जे मविर नागहमारे १ . सन याने येर है. मंडे: वाहिएटर કેટલા કારની વિવિધ નાગકુદરે શાંત થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તभोजनदेवन्ययी र . विदिशा नमg- या द्रादि .५ नाम न ५५ है. और .. निरकी अनुवारेनु : उच्च रहेर इदिनु कि राम मनिलयः' मा १२ १३ १४३ प्र४६ है... यी क्षे त्र है दोन समाजोन इन 201: सटु पक्षन
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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