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प्रमैयान्द्रका टीका श०२४ उ.२ सू०३ मनुष्येभ्यो असुरोत्पादादिकम् ६३. ज्ञातव्यम् । केवलं तिर्यग्योनिकगमापेक्षया यद्वैलक्षण्यं तदर्शयति-'नवर' इत्यादि 'नवर सरीरोगाहणा तिसु वि गमएमु' नवर-केरलं शरीरावगाहना त्रिष्वपि गर्म केषु'जहन्नेणं साइरेगाई पंचधणुसयाई जघन्येन सातिरेकाणि पञ्चधनुःशतानि. 'उक्कोसेण वि साइरेगाई पंचधणुसयाई उत्कर्षेणाऽपि सातिरेकाणि पञ्च धनुशतानि, 'सेप्तं तं चेव' शेष तदेव शेपं-शरीरावगाहनाऽतिरिक्तं सर्वमपि तदेवतिर्यग्योनिकाकरणपठितमेवेह अध्येतन्म् । एवं चतुःपञ्चषष्ठगमकाः प्ररूपिता।" ___ अथ-सप्तमाष्टमनवमगमान् प्रदर्शयितुमाह-'सो चेव अप्पणा' इत्यादि, 'सो चेव अप्पणा उक्कोसकालहिइओ जाओ' यदि स एव आत्मना-स्वयमुस्कृष्ट रेया, दृष्टि आदि द्वारों के सम्बन्ध में कहा गया है वैसा ही कथन इनके सम्बन्ध में यहां पर भी कहना चाहिये, परन्तु तियंग्योनिक जीवों के गम की अपेक्षा यहां के गम में जो भिन्नता है उसे सूत्रकारने 'नवरंसरीरोगाहणा तिसु वि गमएसु० 'इस सूत्र पाठ द्वारा प्रगट किया है, इसमें यह समझाया गया है कि यहां चौथा पांचवां छठा इन तीनो गमोर में शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट से कुछ अधिक पांचसो धनुष की है। 'सेसं तं चेव' तथा शरीरावगाहना से अतिरिक्त और सब कथन तिर्यग्योनिक के प्रकरण जैसा ही है । इस प्रकार से ये चतुर्थ, पंचम और षष्ठ ये तीन गमों का वर्णन हुआ ४-५-६', अब सातवां,
आठवा और नौवां इन गमकों को दिखाने के लिये सूत्रकार कहते हैं'सो चेव अप्पणा उक्कोस कालडिओ जाओ०' यदि वह स्वयं उत्कृष्ट સંબંધમાં કહેવામાં આવ્યું છે, એજ રીતનું કથન આના સંબંધમાં અહિયાં પણ કહી લેવું જોઈએ. પરંતુ તિર્યંચ યુનિક જીવના ગમ કરતાં અહિંના गामा २ हा छ, ते मताचा सूत्रधरे 'नवर सरीरोगाहणा तिसु वि. गमएसु' मा सूत्र५४ द्वारा प्रगट २८ छे.
આ સૂત્રપાઠથી એ સમજાવવામાં આવ્યું છે કે-અહિયાં ત્રણે ગામોમાં શરીરની ઉંચાઈ જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી કંઈક વધારે પાંચસે ધનુષની છે. 'सेसं तं चेत्र' शरीरनी साना शिवायनु ाही तमाम ४थन तियय નિરાળ ના પ્રકરણ પ્રમાણે જ છે, એ જ રીતે ચે, પાંચમ અને છો એ ત્રણ ગમે પણ સમજી લેવા.
હવે સાતમા, આઠમા અને નવમા ગમને બતાવવા માટે સૂત્રકાર કહે छ है-'सो चेव अप्पणा उक्कोसगलढिइओ जाओ'नेत पात Gge ना'