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भगवती ... नवमगमं प्ररूपयन्नाह-'सो चेव उक्कोप' इत्यादि, 'सो चेव उक्कोसकाल. द्विइएमु उववन्नो' स एव उपकालस्थितिकासंख्यातवर्षायुष्कसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको यदि उत्कर्ष कालस्थितिकासुरकुमारेपूत्पधेत तदा-स कियत्काळ-स्थितिकासुरकुमारेपूत्पधेत इति प्रश्नः । उत्तरमाह-'जहन्नेणं तिपकिओवमटिइएमु । उक्कोसेण वि तिपलिभोवमट्टिइएसु उववज्जेज्जा' जघन्येन निपल्पोपमस्थितिकेषु .उत्कर्षेणाऽपि त्रिपल्योपमास्थितिकेषु उत्पोन रादि सर्वमपि प्रश्नोत्तरादिकं प्रथमगमवदेव द्रष्टव्यमिति, एतदेव दर्शयति-'एम चे वत्तवा' इति प्रकरणेन । पूर्वापेक्षया वैलक्षण्यं दर्शयति -'नवरं' इत्यादि, 'नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं छप
नौवां गम इस प्रकार से है-'सो चेव उक्कोसकालष्ट्रिहरतु उपबन्नो' हे भदन्त ! वहीं उत्कृष्ट काल की स्थिनिवाला असंख्यातवर्षायुक संज्ञी पञ्चन्द्रियतियग्योनिक जीव जय उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य होता है तो वह शितने काल की स्थितिवाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? तो इस प्रश्न के त्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम! 'जन्नेणं ति पलिओवमटिइएसु
कोसेगं विति पलिभोवमटिइएस्तु उववज्जेज्जा' वह जघन्य से तीन पल्योपम की स्थितिवाले असुरकुमारों में और उत्कृष्ट से भी तीन प्रत्योपम की स्थितिघाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है । इत्यादि सब प्रश्नोत्तर रूप कथन प्रथम गम के जैसे ही यहां पर कहलेना चहिये, यही पात-'एस चेव वत्तव्यया' इस सूत्रकार पाठ द्वारा कही गयी है। पूर्व प्रकरण की अपेक्षा यहाँ के इस प्रकरण में जो विशेषता है वह
र नवमा गभर्नु थन ४२वामां आवे छे–'सो चेव उक्कोसकालट्रिइएस उववन्नो गन् gre नी स्थितिवाणी मसभ्यात पनी मायुष्य વણે સંશી પચેન્દ્રિય તિય ચ નિવાબે જીવ જ્યારે ઉત્કૃષ્ટ કાળની સ્થિતિ વાળા અસુરકુમારમાં ઉત્પન્ન થવાને ગ્યા હોય તે તે કેટલા કાળની સ્થિતિ વાળા અસુરકુમારેમાં ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે
गौतम ! 'जहन्नेणं पलिओवमट्टिइएसु उक्कोसेण वि ति पलिओवमदिइपर उववज्जेज्जा, धन्यथी त पक्ष्यापभनी स्थितिवामा असुरशुभाशमा અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ ત્રણ પલ્યોપમની સ્થિતિવાળા અસુરકુમારમાં ઉત્પન્ન થાય છેવિગેરે તમામ પ્રશ્નોત્તર રૂપ કથન પહેલા ગામમાં કહ્યા પ્રમાણે જ लिया ५ ४. मे पात 'एस चेव वत्तव्वया' या सूत्रा द्वारा 83a છે, પહેલાના પ્રકરણ કરતાં અહિનાં આ પ્રકરણમાં જે વિશેષ પણું છે, તે