________________
५७२
भगवती सूत्रे
1
तिपलिओम' हुए उपवज्जेज्ञा' जब येन त्रिपल्योपमस्थितिकेषु उत्कर्षेणापि त्रिपल्योपमस्थितिके असुकुमारेषु उत्पद्यत 'एस चेत्र वत्तन्नया' एपैव वक्तव्यता यदि संज्ञितिर्यग्योनिक उत्कृष्टकालस्थितिकासुरकुमारेपूत्पद्यते तदा जघन्योत्कृष्टात्रिपल्योपस्थितिकासुरकुमारेपूत्पत्तिं लभते इत्यादिका सर्वाऽवि पूर्वोदाहना वक्तव्यतैव वक्तव्या | नवरम् - केवल पूर्वगमापेक्षया चैलक्षण्यमेतत् यत् 'ठिई से नेणं विनि पविमाई' स्थिति स्तस्य जघन्येन त्रीणि पत्योपपानि 'उक्कोसेण त्रिविनि पलिओमाई' उत्कर्षेगाऽपि त्रीणि पल्योपमानि जघन्योत्कृष्टाभ्यां त्रीणि पल्योपमानि स्थिति भवति । प्रथमगमे जघन्येन स्थितिः सातिरेका पूर्वकोटि प्रमाणा, उत्कृष्ट नखिपल्योपपात्मिका इह तु जघन्योत्कृष्टामुभाभ्यामपि त्रिप पोपमात्मिका कथित भरत्येव द्वयोर्वैलक्षण्स् । ' एवं अणुवघोषि' एवम् - उववज्जेज्जा' वह जघन्य से तीन पल्पोषम की स्थितिवाले असुरकुमारों में और उत्कृष्ट से भी तीन पल्योपम की स्थितिवाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है । 'एस चैव वत्तन्वया' ऐसी यह सब पूर्वोक्तवक्तव्यता यहां कहलेनी चाहिये, परन्तु पूर्व गम की अपेक्षा जो इस गम में अन्तर है वह स्थिति और अनुबन्धादि को लेकर है-सो ही बात- 'ट्ठिई से जहन्नेर्ण तिनिपलिओ माई' 'उक्को से वि तिन्नि पलि ओवमाई' इस सूत्रपाठ द्वारा यहां प्रकट की गयी है। यहां जवन्य और उत्कृष्ट से दोनों प्रकार से स्थिति तीन पल्योपम की कही गयी है तब कि प्रथम गम में जघन्य से स्थिति कुछ अधिक पूर्वकोटि रूप और उत्कृष्ट से तीन पल्पोपम रूप कही गयी है, 'एवं अणुबंधो वि' इसी प्रकार से अनुबन्ध भी जघन्य और उत्कृष्ट से तीन पल्पोषम रूप यहां कहा गया है, तथा कायसंवेध
સ્થિતિવાળા અસુરકુમારામાં અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ્ ત્રણ પચેપમની સ્થિતિવાળા અસુરકુમાશમાં ઉત્પન્ન થાય છે. 'एस चैव वक्तव्वया' मा प्रभाषेनु मा તમામ પહેલા કહેલ કથન અહીયાં કહેવુ જોઈએ. પરંતુ પહેલા ગમ કરતાં આ ગમમાં જે મંતર-ભેદ છે. તે સ્થિતિ અને અનુખને લઇને છે, એજ वात 'ठिई से जहन्नेणं तिनि पछिओवमाइ उक्कोसेणं वि तिन्नि पलिओव મારું આ સૂત્રપાઠ દ્વારા અહિયાં પ્રગટ કરેલ છે અહિયાં જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ અને પ્રકારથી સ્થિતિ ત્રણ પત્યે।પમની કહી છે, જ્યારે પહેલા ગુમમાં જઘન્ય સ્થિતિ કંઈક વધારે પૂટિ રૂપ અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પક્ષ્ચાપમ રૂપ કહેલ છે. ‘ä અનુષધો વિ' એજ રીતે અનુષધ પણ જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પૂણ્યેાપમ રૂપ કહેલ છે. તથા કાયસ વેધ ભવની અપેક્ષાએ એ ભવ