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________________ भगवतीसरे संक्षिपञ्चेपन्द्रियतिर्यग्योनिकः खलु भदन्त ! 'जे भविए' यो भव्यः-समुत्पत्तिपोग्यः, 'असुरकुमारेसु उववज्जित्तए' असुरकुमारेषु उत्पतुम्, 'से गं भंते' स खलु भदन्त ! केवइयकालट्ठिएम उववज्जेज्ना' कियत्कालस्थिति के प्रत्पधेत हे भदन्त ! य: पर्याप्तासंक्षिपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिको जीवोऽमुरकुमारेषु समुत्पत्तियोग्यो विद्यते स खल कियत्काल स्थिति के पु असुरकुमारेषु उत्पधेत इतिपश्नः। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं दसवाससहस्सलिइएसु' जघन्येन दसवर्ष सहस्रस्थितिके उत्पद्यते, इत्यग्रिमेण सम्बन्धः । 'उको. सेंण' उत्कर्षेण 'पलिओवमस्स असंखेज्जइभागष्टिइएमु उपवज्जेज्जा' पल्योपम. स्यासंख्येयभागस्थिति केषु असुरकुमारेपु उत्पत । इह पल्योपमस्यासंख्येयभागअहणेन पूर्वकोटि ग्राह्या यतः संमूच्छिमजीवानामुत्करतः पूर्वकोटिप्रमाणमायुभवति स च समूच्छिम जीवः उत्कृष्टतः स्वायुष्कतुल्यमेव देवायुपो बन्धनं करोति न ततोऽधिकस्यायुषो बन्धनं करोति-- अग्रिम प्रकरण का कथन करते हैं-'पजत्त असन्नि पंचिंदियतिरिक्ख. जोणिए णं भंते ? 'इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-हे भदन्त । पर्याप्त असंज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव कि 'जे भविए असुरकुमारेसु उवव०' जो असुरकुमारों में उत्पन्न होने के योग्य है, वह है मदन्त ! 'केवइयकाल.' कितने काल की स्थितिवाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! जहन्नेणं दसवाससहस्सटिइएस्सु, उक्कोसेणं पलिभोवमस्स असंखेज्जह भाग०' वह जघन्य से दश हजार वर्ष की स्थिति वाले असुरकुमारों में और 'उकोसेणं' उत्कृष्ट से पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले अस्तरकुमारों में उत्पन्न होता है, यहाँ पल्योपम के असंख्यातवें भाग के ग्रहण से पूर्वकोटि ग्राह्य है, क्योंकि भावना२ २d Bथन ४२ छ-'पज्जत्तअसन्निपचि दियविरिक्खजोणिए णं भंते !' मा सत्रयी गौतमत्वामागे प्रभुने मे पूछयु छ 3-3 मापन पयात अशी पयन्द्रिय तिय य योनिपाणी १ २ 'भविए असुरकुमारेसु उवव०' मसुमारेरामा उत्पन्न यवान योग्य छ, सान्त 'फेवइयकाल' eal - स्थतिवाणा असुरशुभारोमi Gurt थाय छ ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रभु ४३ छ -'गोयमा!' 3 गौतम! 'जहन्नेणं दस सिसहस्सद्विइएसु उन्कोसेणं पलि पोषमस्स असंखेज्जइभाग०' अन्यथी स. હજાર વર્ષની રિયતિવાળા અસુરકુમારમાં અને ઉત્કૃષ્ટથી ૫૫મના અસં. ખ્યાતમા ભાગની સ્થિતિવાળા અસુરકુમારેમાં ઉત્પન્ન થાય છે. અહિયાં ૫૫મના અસંખ્યાતમા ભાગના ગ્રહણથી પૂર્વકેટિ ગ્રહણ કરાઈ છે. કેમકે
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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