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भगवतोत्रे
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शर्कराम नादि द्वितीयादि पृथिव्यां जघन्यत उत्कृष्टतथापि सागरोपमाण्येव वक्तव्यानि । रत्नप्रभागमतुल्या नवापि गमाः कियत्पर्यन्तं ज्ञातव्याः ? तत्राह - ' एवं जाव इत्यादि । ' एवं जाव छपुढवीत्ति एवं यावत् पष्ठपृथिवीति, शर्करामभाव आरभ्य षष्ठ पृथिवी तमा तत्पर्यन्तं जीवानां सर्वे गमा रत्नप्रभाशर्करा पृथिवी वदेवगन्तव्या इति । अत्रापि यद्वैलक्षण्यं तद्दर्शयति- 'नवर' इत्यादि, 'नवरं नेरहयठिई जा जत्थ पुढवीए जहन्नुकोसिया सा तेर्ण चेव कमेणं चउगुणा कायन्त्रा' नवर नैरथिक स्थिति य यत्र पृथिव्यां जघन्या उत्कृष्टा वा सा तेनैव क्रमेण चतुर्गुणा कर्तव्या, कस्यां पृथिव्यां कियतीस्थितिरिति गाधा द्वयेनाह
एक सागरोपम ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है, परन्तु शर्कराप्रभा आदि पृथिवीयों में जघन्य और उत्कृष्ट दोनों प्रकार के कथन में सागरोपम शब्द का ही प्रयोग करना चाहिये, ये रत्नप्रभा सम्बन्धी नौगमों की तुल्यतावाले अन्य इतर पृथिवियों के नौ गम हड्डी पृथिवी तक ही जानना चाहिये, यही बात 'एवं जाव छट्ट पुढवीत्ति' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गयी है । अर्थात् शर्करा प्रभा से लेकर छटी तमा पृथिवी तक वहां के जीवों के समस्तगम रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा के जीवों के जैसे हैं। परन्तु यहां पर भी जो भिन्नता है - उसे सूत्रकार 'नवर " इत्यादि पाठ द्वारा प्रगट करते हैं-नवर नेरइयटिई जा जश्थ पुढवीए 'जहन्नुकोसिया सा तेणं चेव कमेणं चउगुणा कायव्वा' वे इस पाठ द्वारा यह समझा रहे हैं कि जहां पर जितनी नैरयिक की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट है उसे उसी के अनुसार चौगुनी कर लेना चाहिये, किस पृथिवी છુના શબ્દોના પ્રત્યેાગ કરવામાં આવ્યે છે. પરંતુ શર્કરાપ્રભા વિગેરે ખીજી પૃથ્વીચામાં જધન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ મન્ને પ્રકારના કથનમાં સાગરાપમ શબ્દને જ પ્રત્યેાગ કરવ! જોઇએ. રત્નપ્રભા સમધી નવ ૯ ગમેાની સમાનતાવાળા ઇતર पृथ्वीयाना नव गभी छठ्ठी पृथ्वी सुधीन लघुवा सेन वात 'एवं जाव छट्ठी पुढवीसि' मा सूत्रपा द्वारा प्रगट पुरेस छे. अर्थात् शर्मा राप्रभाथी बने છઠ્ઠી તમા પૃથ્વી સુધી ત્યાંના જીવાના ખધાજ ગમા રત્નપ્રભા અને શાપ્ર
ભાના જીવાના કથન પ્રમાણે છે. પરંતુ અહિયાં તે કથન કરતાં જે ભિન્નપણુ छेतेने सूत्रर 'नवरं' इत्याहि पाठ द्वारा अगर मेरे छे. ते भा प्रभाये है -- नवरं नेरइयठिई जा जत्थ पुढवीए जद्दन्नुकोसिया सा तेणं चैव कमेणं चर'गुणा कायव्वा' तेथे भा पाठ द्वारा में सभलवे छेउ-न्यां भेटी नैरयि. ની સ્થિતિ જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી કહી છે, તેને તેજ પ્રમાણે ચાર ગણી કરવી જોઈએ. કઈ પૃથ્વીમાં કેટ્લી' સ્થિતિ છે ? એજ વાત હવે આ એ