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भगवतीको तृतीयगर्म दर्शयितुमाह-'सो चेव' इत्यादि, 'सो चेव उक्कोसकाललिइएसु उववनो' स एव पर्याप्तसंख्यातवर्षायु पन्द्रियतिर्यग्योनिको जीवो यदि उत्कर्षस्थितिकरत्नप्रभानरयिकेषु उत्पन्नो भवेत् तदा-'जहन्नेणं सागरोवमाटिएम' जघन्येन सागरोपमस्थिति केषु नारके पुत्पत, 'उक्को सेण वि' उत्कर्षेणापि 'सागरोनमहिइएमु उनयज्जेज्जा' सागरोपमस्थितिकेषु नरयिकेपघेत, 'अवसेसो परिमाणादीओ भलादेसपज्जवसाणा सो क्षेत्र पढमो गमो यो अवशेष परिमाणादिको समादेशपर्यवसानका र एम प्रथमो नमो नेतयः, 'ते खस जीवा उत्कृष्ट से पूर्वोक्तानुसार ही वह इतने काल तक गमनागमन करता रहता है, ऐसा यह द्वितीय गम है।
तृतीय गम इस प्रकार ले है-'लो चेव उक्कोसकालटिइएसु उववन्नों' वही पर्याप्त संख्यातायुष्क पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीव यदि उस्कृष्ट काल की स्थिति वाले रत्नप्रभा के नैरपिकों में उत्पन्न हो जाता है तो 'जहन्नेणं सागरोवमटिहएसु' वह जघन्य से जिनकी स्थिति एक सागरोपम की होती है उन नारकों में उत्पन्न होता है,
और 'उकोसेणं घि' उत्कृष्ट से भी 'सागरोवमहिए उघवन्जेज्जा' जिनकी स्थिति एक सागरोपम की होती है उनमें उत्पन्न होता है, 'अवसेसो परिमाणादीओ भवादेसपज्जवसाणो सो चेव पढमो गमो णेयव्यो' इस कथन के अतिरिक्त और जो परिमाण आदि बार सम्बन्धी भवादेश तक का कथन है वह भी प्रथम गमक जैसा ही તે એ ગતિનું સેવન કરે છે. તથા જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી પહેલા કહ્યા પ્રમાણે જ તે એટલા કાળ સુધી ગમના ગમન કરતા રહે છે.
આ પ્રમાણે આ બીજે ગામ છે. ૨ श्रीन गम मा प्रभारी छे-'सो चेव उकोसकालद्विइएसु उववन्नो' ते પર્યાપ્ત સંખ્યાત વર્ષની આયુવાળે પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિમાં ઉત્પન્ન થયેલે જીવ જે ઉત્કૃષ્ટ કાળની સ્થિતિવાળા રતનપ્રભા પૃથ્વીના નિરયિકેમાં
५-न 25 तय तो 'जहन्नेण सागरोवमद्विइएसु' धन्यथा नी स्थिति में सागरामनी डाय छे. त नाभांपन्न थाय छे. मने उकोसेणं वि. Gथा ५Y 'सागरोवमटिइएसु उववज्जेज्जा' भनी स्थिति से सागरोपभनी
त्य छ तमामा ५न्न थाय छे. 'अवसेसा परिमाणादीओ भवादिसपन्जपसाणा सो चेव पढमा गमो णेयव्यो' मा ४थन शिपायनु परिभा माद्वार સંબંધીનું ભવાદેશ સુધીનું જે કથન છે, તે પણું પહેલા ગમક પ્રમાણે જ છે.