________________
. . . .- .. • भगवती ___पृथिवीकायिकस्योपपातं मदर्य अकायिकस्य तदर्शयितुमाह-'आउकाइ: एणं' इत्यादि
मूलम्-'आउकाइए णं भंते! इमीसे रयणपप्पभाए सकरपभाए य पुढवीए अंतरा समोहए समोहणित्ता जे भविए. सोहम्मे कप्पे आउकाइयत्ताए उववजित्तए० सेसं जहा पुढवीकाइयस्ल जाव से तेणटेणं० एवं पढमदोच्चाणं अंतरा समोहए. जाव ईसीपभाराए उववाएयव्वो एवं एएणं कमेणं जाव तमाए अहेसत्तमाए पुढवीए अंतरा समोहए समोहणित्ता जाव ईसीपन्भाराए उववाएयवो आउकाइयत्ताए। आउक्काइए णं भंते! सोहम्मीसाणाणं सर्णकुमारमाहिंदाण य कप्पाणं अंतरा समोहए समोहणित्ताजे भविएइमीसेरयणप्पभाए पुढवीए घणोदहि-घणोदहिवलएसु आउकाइयत्ताए उववज्जित्तए० सेसंतं चेव,एवं एएहिं चेव अंतरा समोहओ जाव अहेसत्तमाए पुढवीए घणोदहिघणोंदहिवलएसु आउकाइयत्ताए उववाएयवो,एवंजाव अणुत्तरविमाणाणं ईसीपब्भाराए य पुढवीए अंतरा समोहए जाव अहे. में भी ऐसा ही कथन जानना चाहिये अर्थात् यहां देशतः और सर्वतः मरणसमुद्घात करके यावत् अधः सप्तमी पृथिवी में पृथिवीकायिकरूप से उत्पन्न होने योग्य हुमा पृथिवीकायिक जीव पहिले वहां उत्पन्न हो जाता है और बाद में आहार ग्रहण करता है तथा पहिले यह आहार ग्रहण कर लेता है और बाद में वहां उत्पन्न हो जाता है इस प्रकार दोनों पक्ष मान्य हुए हैं ॥५० १॥ પણાથી ઉત્પન્ન થવાને ગ્ય થયેલ પૃવિકાયિક જીવ પહેલાં ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે, અને તે પછી આહાર ગ્રહણ કરે છે, તથા પહેલાં તે આહાર ગ્રહણ કરી લે છે, અને તે પછી તે ત્યાં ઉત્પન થઈ જાય છેઆ રીતના બને પક્ષે માન્ય થયેલા છે. સૂ૦ ૧