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भगवती सूत्रे
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हियं' पल्योपन्स्यासंख्पातमागं पूर्व कोटयभ्यधिकम् - पूर्व कोटयधिकपल्योपमस्यासंख्यावभाग पर्यन्तं सेवते गमनागमने च करोतीत्यग्रिमेण संबन्धः । 'उक्को सेण पिस्सि असंखेज्जभागं पुनफोडिए अमहिये' उत्कृष्टतोऽपि पल्पोष मस्यासंख्यातभागं पूर्व कोट्याधिकम् 'एवइयं काल सेवेज्जा' एतावकं - पूर्वग्दर्शितं कालं सेवेत तिर्यग्गतिं कालं नरकगतिचेति । 'एवइयं कालं गहरागई करेज्जा' एतावत् कालम् एतावत्कालपर्यन्तं गतिमागतिं च कुर्यात् एवं एए ओहियतिन्निगमगा' एवम् उपरि दर्शितप्रकारेण औधिकाः सामान्यरूपाः त्रयो गमा भवन्ति, तथा - ' जहन्नकाल डिएस तिन्नि गपगा' जघन्यकालस्थितिकेषु यो गतकार था उक्कोसकालfsree तिन्नि गमगा' उत्कर्ष कालस्थितिकेषु यो गमका', 'सन्वे ते पात्र गमा भवति' सर्वे ते मिलित्वा नच संख्यका गमा भवन्ति, समुच्चयविषयकास्त्रयो गमकाः, तथा जघन्यकालस्थितिकजीवविपयका स्त्रयो गमाः६, एमुकृष्टकाल स्थितिकजीवविषयका यो गमाः९, इत्येवं प्रकारेण सर्व संकलनया नवसंख्यका गमा भवन्तीति । सु०४ ।
गाई, कालादेसेणं जहन्नेणं पलिओमस्त असंखेज्जभागं पुव्वको डिए अमहिये' हे गौतम! भव की अपेक्षा वह दो भवों को ग्रहण करने तक और काल की अपेक्षा जघन्य से पूर्व कोटि अधिक पल्योपम के असंorna भाग तक और 'उक्कोसेणं त्रिपलिओचमस्स असंखेज ज्जइभाग पुनवकोडिए अमहिये' उत्कृष्ट से भी पूर्वकोटि से अधिक पत्योम के असंख्यातवें भाग तक उस गति का सेवन करता है और गमनागमन 'करता है, 'एवं एए ओहिय तिन्नि गमगा' इस प्रकार से ये सामान्य रूप तीन गमक है, तथा 'जहन्न कालपिएस निन्नि गमगा' जघन्य काल की स्थिति वालों के सम्बन्ध में तीन गमक हैं, और 'उक्कोसकालहिंडएस तिन्नि गमगा' उत्कृष्टकाल की स्थिति वालों के सम्बन्ध में, भी तीन गमक हैं, इस प्रकार 'सव्वे ते णव गमा भवंति' सच गमक नौ होते हैं ||४||
असखेज्जइभाग पुव्त्रकोडिए अमहिये' हे गौतम! लवनी अपेक्षा ते मे ભવ ગ્રહણ કરતા સુધી અને કાળની અપેક્ષાએ જઘન્યથી પૂ'કૈટ અધિક પચેપમના અસ`ખ્યાતમા ભાગ પ્રમાણુ સુધી તે ગતિનુ સેવન કરે છે અને 9 भनाभन रे छे. ' एवं एए ओहियतिन्नि गमगा' આ રીતે સામાન્યરૂપ गम ने जहन्नकालट्ठिइएस तिन्नि गमगा' धन्यानी स्थिति बाजाना सभधभां पशु त्र गम हे 'उक्कोम कालट्ठिइएस तिन्नि गमगा ' उत्कृष्ट अपनी स्थितित्राणाना संधसां य भ छे, ये रीते 'सव्वे ते णव गमगा भवति' मघा भजीने नव शभ य लय हे सू ४॥