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भगवतीसूत्रे 'मूलचाए चक्कमंति' मूलतयाऽवक्रामन्ति समुत्पद्यन्ते इत्यर्थः, 'तेणं जीवा कओहितो 'उववज्जति' ते खल्लु जीव: कुछ आगत्योद्यन्ते किं नैरयिकेभ्य स्तियग्भ्यो देवे
भ्यो वा इति प्रश्नः, अथाऽतिदेशेनाह-एवं जहेब' इत्यादि । 'एवं जहेव बसघग्गो' एवं यथैव दशोद्देशकयुक्तो वंशवर्गः कथितस्तथैव 'एस्थ विमलादीया दसउद्दसंगा' अत्रापि मूलादिकाः वीजान्ताः दशोदेशका भणितव्याः मूलकन्दस्कन्ध स्वर शाखाप्रबालपत्रपुष्पफलपीजनायका दशोदेशका वंशवर्गवदेत्र वक्तव्याः। वंशवर्गापेक्षया यद्वलक्षण्यं सदाह-'नवरं खंधुझसे देवा उपवज्जति' नवरं इक्खुवाडिया' हे भदन्त ! इक्षु से लेकर नलतक जो पर्वक बनस्पतियों है सो इन वनस्पतियों के मूलरूप से जो जीप उत्पन्न होते हैं 'ते णं जीवा कमोहितो उवषजति' वे जीव यहां कहां से आकरके उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरयिकों से आकरके वहां उत्पन्न होने हैं ? अथवा तिर्यञ्चों से आकरके वहां उत्पन्न होते हैं अथवा मनुष्यों से आकरके वहां उत्पन्न होते हैं ? अथवा देघों ले आकरके उत्पन्न होते हैं इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-'एवं जहेच बंसवग्गो तहेव एत्थ वि मुलादीया दस उद्देसगा' हे गौतम जैसा कथन दश उद्देशकों से युक्त वंश वर्ग में किया गया है, उसी प्रकार का कथन यहां पर भी मूलादि से लेकर बीजतकके दश उद्देशकों द्वारा करना चाहिये अर्थात् वंशवर्ग में जैसे ये मूल, कन्द, स्कन्ध, स्वचा, शाखा, प्रचाल, पन्न, पुष्प, फल एवं पीज इन नामों वाले १० उद्देशक हैं उसी प्रकार से इस पंचम वर्ग वारिया' है भगवान् सेतीथी सहन न सुधान ५६-गावाजी पन५५तिथे। छे, ते वनस्पतियाना भू ३५थी । उत्पन्न थाय छ, 'ते णं जीवा! कोहि ! उववज्जंति' वा त्यो यथा मापान ७५न्न थ य छ१ शुतमा નારકમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે કે તિયામાંથી આવીને ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે ? અગર મનુષ્યોમાંથી આવીને ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા જેમાંથી આવીને ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ સ્વામીને ४७ छ है-'एवं जहेव वसवगो तहेव एत्थ वि मूलादिया दस उहेसगा' गीतम! દસ ઉદ્દેશાવાળા વશવર્ગમાં જે પ્રમાણેનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણેનું તમામ વર્ણન મૂળથી લઈને બીજ સુધીના દશ ઉદેશાઓથી અહિયાં પણ કરી લેવું. અર્થાત્ વંશવર્ગમાં જે પ્રમાણે મૂલ, કન્દ, ધ, છાલ, કાળ, -કૂપળે,પત્ર, પુપ ફળ અને બીજ આ નામેવાળા દસ ઉદેશાઓ કહ્યા છે, એજ