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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२१ व.४ पर्वकवनस्पतिगतजीवनि० सदर . . . अथ चतुर्थों वर्गः प्रारभ्यते। . . : . . अतसी प्रभृत्यौषधिवनस्पतिविषयकवतीय वर्ग समाप्य पर्वकवनस्पतिजातीयवंशादिवनस्पतिविषयकश्चतुर्थों वर्ग: मारभ्यते, तदनेन संबन्धेन आयातस्य चतुर्थवर्गस्येदमादिमं सूत्रम्-'अह भंते ! वसवेणु' इत्यादि। " .. मूलम्-'अह भंते! वंसवेणुकणकककावंस वारंवंस दंडा 'कुडा विमा चंडा वेणुया- कल्लागाणं, एएसि ण जे जीवा मूल ताए वक्कमंति० एवं एत्थवि मूलादीया दस उद्देसंगा जव ‘सालीणं नवरं देवो सव्वत्थ वि न उववज्जइ, तिन्नि लेस्साओ सव्वस्थ वि छवीसं भंगा सेसं तं चैव ॥सू०१॥ .. ... ॥एकवीसइमे सए चउत्थो वग्गो समतो॥ . छाया-अथ भदन्त ! वंशवेणुकनककावंशवास्वंशदण्डाकुडाविमा चंडावेणुका कल्याणानाम् एतेषां खलु ये जीवा मूलतया अवक्रामन्ति० एवमत्रापि मूलादिका दशोदेशकाः यथैव शालीनाम् , नवरं देवः सर्वत्रापि नोत्पद्यते तिस्रो लेश्याः सर्वत्रापि पविशति भङ्गाः शेषं तदेव ॥सू०१॥ एकविंशतितमशतके चतुर्थों वर्गः समाप्तः ।। टीका-शादिकल्याणपर्यन्तानां पर्वकवनस्पतिविशेषाणाम्, 'एएसि णं चतुर्थवर्ग--अतसी-(अलसी) आदि औषधिरूप वनस्पति सम्बन्धी तृतीयवर्ग समाप्तकर अब सूत्रकार पर्वक वनस्पति के जातीय जो वंश आदि वनस्पति हैं उनके सम्बन्ध में यह चतुर्थ वर्ग प्रारंभ करते हैं। इस चतुर्थ वर्ग का यह 'अह भंते ! वसवेणु' आदिरूप सूत्र प्रथमसूत्र है'अह भंते ! सवेणु' इत्यादि । टीकार्थ-गौतमस्वामी प्रभु ले ऐसा पूछ रहे हैं 'अह भंते ! वंस. .. याथा मन आज . मतसी (Hal) विगेरे भौषधी३५ वनस्पति सधी जी 4 અમાપ્ત કરીને હવે સૂત્રકાર પર્વ (ગાંઠ) વાળી વનસ્પતિની જાતના જે વાંસ વગેરે વનસ્પતિ છે, તેના સંબંધમાં આ ચે વર્ગ પ્રારંભ કરે છે. આ बाथा गनुपडे सूत्र 21 प्रमाणे छे-अह भ! वंस वेणु' या Nati'-गौतम स्वामी प्रभुने मे पूछे-छे 3-'अह भंते । वंसवेणुकणक
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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