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भगवतीखें 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा!' हे गौतम ! 'सिद्धा चुलसीइसमज्जिया वि' सिद्धा श्चतुरशीतिसमर्जिता अपि१ प्रथमविकल्पेन युक्ता अपि भवन्ति सिद्धा इति। 'नो चुलसीइसमज्जिया वि२' नो चतुरशीतिसमर्जिवा अपि भवन्ति सिद्धा इतिर। 'चुलसीईए य नो चुलसीइए य समज्जिया३' चतुरशीत्या च नोचतुरशीत्या-चापि समर्जिता भवन्ति । सिद्धा इति तृतीया३ । किन्तु 'नो चुलसीइहिं समज्जिया' नो नैव चतुरशीतिभिः समर्जिताः४, नो-नैव अनेकामिश्चतुरशीतिसंख्याभिरपि समर्जिता इति चतु:४ । 'नो चुलसीइहिय नोचुलसीईए य समज्जिया वि५' तथा नो-नैव चतुरशीतिभिश्च नो चतुरशीत्या च समर्जिता अपि सिद्धा इति पञ्चमो विकल्प इत्युत्तरम् । अत्र भगवता यं भङ्गत्रयं स्वीकृतमताएवात्र 'अपि' शब्दस्य प्रयोगः कृतः । अन्तिमौ चतुर्थ-पञ्चमी द्वौ मङ्गौ निषिद्धौ, अत स्तन हैं५ इस प्रकार के ये पांच प्रश्न हैं इन प्रश्नों के उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा ! सिद्धा चुलप्लीइसमज्जिया वि१' हे गौतम! सिद्ध जीव चतुर. शीति से समर्जित भी होते हैं 'नो चुलसीइसमज्जिया विर' नो चतुर. शीति ले भी समर्जित होते हैं२, "चुलसीईए नो चुललीईए य समज्जिया वि३' एक चतुरशीति से और एक नो चतुरशीति से समर्जित भी होते हैं। किन्तु वे 'नो चुल सीइहि समज्जिया४' अनेक चतुरशीति, की संख्या से उत्पन्न-सर्जित नहीं होते हैं और न वे अनेक चतुरशीति ले एवं एक नो चतुरशीति से भी समर्जित होते हैं यहां जो 'अपि' शब्द का प्रयोग किया गया है वह इस बात को कहने के लिये किया गया है कि यहां भगवान ने पूर्वोक्त ३ ही भंग स्वीकार किये है शेष चतुर्थ और पंचम ये दो भंग स्वीकार नहीं किये हैं। इसी कारण वहां मा पांय प्रश्नी छ. मा प्रश्नाना उत्तरमा प्रभु छ ?-गोयमा ! सिद्धा चुलसीइ समन्जिया वि१' हे गौतम ! सिद्ध छ। याशीथा समत ५ डाय छ, १ 'नो चुलसीइ समज्जिया वि २' न। व्याशीथी समत पर डाय छे. २ 'चुलसीईए नो चुलसीईए य समज्जिया वि३' मे यार्याશીથી અને એક ને ચર્યાશીથી પણ સમજીત હોય છે. ૩ પરંતુ તેઓ 'नो चुलसीईहिं समनिया वि ४' मन योर्याशीनी सभ्याथी समतઉત્પન્ન થતા નથી. ૪ તેમજ અનેક ચર્યાશી અને એક નો એશીથી પણ अमत 3ाता नथी. ५ मामा र 'अपि' शहना प्रयास या छे. तसे વાત બતાવવા કર્યો છે કે અહિયાં ભગવાને પૂર્વોક્ત ત્રણ જ ભ ગેનો સ્વીકાર કર્યો છે. ચેથા અને પાંચમાં ભંગને સ્વીકાર કર્યો નથી. તેમજ તે કારણે અહિયાં “” શબ્દ પ્રયોગ કર્યો છે..