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प्रमैयर्यान्द्रका टीका श०२० उ.१० सू०३ नरयिकादीनां षट्कादिसमर्जितत्वम् १५५ भावः। 'बंदिया जाय वेमाणिया सिद्धा जहा नेरइया' द्वीन्द्रिया यावद् वैमानिकार सिद्धाश्च यथा नैरयिकाः, यथा नैरयिकाः, यथा नारका जीवाः षटकपञ्चकविकल्पैः समर्जितास्तथा द्वीन्द्रियादारभ्य वैमानिकान्ता जीवाः, तथा सिद्धाश्च पदकविकल्पपश्चकैः समर्जिता भवन्तीति भावः। अथैतेषामल्पबहुत्थमाइ 'एएसिणंभंते !' इत्यादि, 'एएसिणं. भंते । नेरइयाणं' एतेषां खलु भदन्त ! नैरयिकाणाम् 'छक्कसमज्जियाणं पटक समर्जितानाम् , नोछक्कसमज्जियाण' नो षट्क समर्जितानाम् , 'छक्केण य नो छक्केण य समज्जियाणं' षट्केन च नो षट्केन च समजितानाम् , 'छक्केहिय समज्जियाण' षट्कैश्च समनितानाम्, 'छक्केहिय नो छक्केण य समज्जियाण' . षट्रकैश्च नौ षट्कैन च समजितानाम् ‘कयरे,कयरेहिती जाव विसेसाहिया वा' कतरे ऐसा द्वितीयविकल्प, एकषट्क से एवं एक नो ष क से समर्जित ऐसा तृतीय विकल्प" ये समर्जित संबंधी तीनों विकल्प यहां संभवित नहीं हैं। 'वेईदिया जाव वेमाणिया, सिद्धा जहा नेरइया' जिस प्रकार नैरयिक जीव षटक, नो षट्क आदि पांच विकल्पों से समर्जित कहे- गये हैं उसी प्रकार द्वीन्द्रिय से लेकर वैमानिकान्त जीव और सिद्ध जीव ये सब भी षट्क, नो षट्क आदि पांचों विकल्पों से समर्जित होते कहे गये हैं। अब सूत्रकार इनके अल्प बहुत्व का कथन करते है-'एएसिणं भंते। नेरइयाण" इन नैरपिकों के बीच में जो कि षट्कसमर्जित हैं, नो षट्क , समर्जित है, एकपटक ले और एक नो पदक से समर्जित है, अनेक षट्कों से समर्जित हैं एवं अनेक षट्कों से एवं एक नो षट्क से समर्जित हैं कौन किन से यावत् अल्प हैं ? किन कौन से बहुत हैं ? कौन किनके तुल्य हैं ? और कौन किनसे विशेषाधिक हैं ? ऐसा यह अल्पबहुत्व. એ બીજો વિકલ્પ એક ષથી અને એક ને પકથી સમજીત એ त्री xिe५ मा ऋणे qिueो मडिया समता नथी. 'बेइदिया जाव वेमाणिया सिद्धा जहा नेरइया' रे शत ना२४ीय व षट् भने ना पद વિગેરે પાંચ વિકપથી સમજીત કહ્યા છે, એજ રીતે બેઇન્દ્રિયથી લઈને વૈમાનિક સુધીના છ અને સિદ્ધ જીવે એ બધા ષક ને ષક વિગેરે પાંચ વિકલ્પથી સમજી લેવાનું કહેલ છે.
वे सूत्र तमना ६५! मन मपातु ४थन ४२ छ, 'एएसि ण भते । नेरइयाण' मा नासीयामा २ षट् समत छ, न षट् सम. ઈત છે, એક ષથી અને એક ને ષકથી સમજીત છે, અનેક પકેથી સમત છે, અને અનેક ષકથી અને એક ને ષકથી સમજીત છે, તેઓ