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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ.१० सू०३ नैरयिकादीनां षटकाविसमर्जितत्वम् १५३ इत्यादि, ‘से केपट्टेणं जाव समज्जिया वि' तत्- केनाथैन, केन कारणेन भदन्त ! एवमुच्यते पृथिवीकायिकाः षट्कैः समजिताः ४ षट्कैच नो पट्केन च समर्जिता अपि ५, किन्तु न षट्क समर्जिताः. १, नो षट्क समजिताः २, न च षटकेन नों षट्केन च समर्जिताः ३ इति प्रश्नः । उत्तरमाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम-! 'जे णं पुढवीकाइया णेगेहिं छक्कएहि पवेसणगं पविसंति' ये खलु पृथिवीकायिकाः अनेक पटकैः मवेशनकं प्रविशन्ति ते णं पुढवीकाइया छक्केहि समज्जिया' ते खलु पृथिवीकायिकाः पदकै समनिता भवन्ति इति ४ । 'जे णं - "पृथिवीकायिक जीव चतुर्थ एवं पंचम विकल्पों से ही समर्जित होते हैं-प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय विकल्पों से वे समर्जित नहीं होते है" इस प्रकार के कथन में कारण को जानने के अभिप्राय से गौतम प्रभु से अब ऐसा पूछते हैं-'से केणटेणं जाच समज्जिया वि' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि-पृथिवीकायिक जीव, अनेक षकों से समर्जित हैं। और अनेक षट्कों से और एक नो षट्क से भी समर्जित हैं५ किन्तु वे षट्क से समर्जित नहीं हैं, नो षट्क से समर्जित नहीं हैं, तथा-एक षट्क से और एक नो बट्क से भी समर्जित नहीं हैं। इस गौतम के प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-गोयमा । जेणं पुढवीकाइया णेगेहि छक्कएहि पवेसणगं पविसंति, ते णं पुढवीकाइया छक्केहि समज्जिया' जो पृथिवीकायिक अनेक षकों से तथा दसरे जघन्य से एक प्रवेशनक से अथवा-दो प्रवेशनक से अथवा तीन प्रवेशनक से और उत्कृष्ट से पांच प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं 'तेणं
યુવીકાયિક જી ચોથા અને પાંચમા વિકલ્પોથી જ સમજીત હોય છે. પહેલા, બીજા અને ત્રીજા વિકલ્પથી તેઓ સમજીત હોતા નથી આ પ્રકારના કથનનું કારણ જાણવાની ઈચ્છાથી ગૌતમસ્વામી પ્રભુને પૂછે છે કે – 'सेकेणदेणं जाव समज्जिया वि' भगवन् मा५ मे शाथी है। છે કે પૃથ્વીકાયિક જીવ અનેક પકેથી સમજીત હોય છે. ૪ અને અનેક વૃકથી અને એક ને ષકથી સમજીત છે. ૫ પરંતુ તેઓ એક થી અને એક ને ષકથી સમર્થત હતા નથી? આ રીતના ગૌતમસ્વામીના प्रश्नना उत्तरमा प्रभु ४ छ । 'गोयमा! जे गं पुढत्रीकाइया णेगेहि छक्कएहि पवेसणगं पविसति ते णं पुढवीकाइया छक्केहि समज्जिया' २ वयो । અનેક પકેથી તથા બીજા જઘન્યથી એક પ્રવેશનકથી અથવા બે પ્રવેશનકથી
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