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प्रमैयन्द्रिका टीका श०२० ३०१ म.२ गमावारणम्य गन्यादेनिरपणम् १०१ माह-'नवरं इत्यादि भारं निमनखुनो अशुपारयहिनाणं नवरम्-अयं विशेषः प्रिमाया-एकविंगतिवारम् अनुपर्यटय खन्टु 'व्यमागच्छना' 'हव्वं' जीवमागच्छेद, कश्चिद् मट्टिकादिविशेषणयुनो देवः अ{ जम्बूद्वीपं सम्प्रत्येत्र पर्यटामीतिरसा जिलक्षपोडशसहमद्विशनपप्तविंशति (३१६२२७) योजन क्रोश. प्रयाप्टरिंशत्यधिकधिगन् (३२८) धनुः सार्दत्रयोदगांगुलाधिकाविस्तृत परिधिः युक्तं जम्महीपं चापुटिकात्रयपरिमितकालमात्रेण एकत्रिगतिगामनुपर्यटय गीत. माग.छे। तस्य देवस्य याशी शीघ्रगमनशक्तिः तारशी पत्र शक्तिनाचारणमनेरिति एतदेवाह-'जंघाचारणस्सणं गोयमा' जंघाचारणस्य बल गौतम । रहा सीहा गई' तथा-ताशदेवचदेव शीघ्रा-स्वरिता गतिः-गगनव्यापार इत्यर्थः । 'तहा सीहे गाविसए पन्नत्ते तथा शीघ्र:-त्वरितो गतिविपयः प्राप्तः । 'जंघाचारणस्त णं भंते जंघाचारणस्य खलु भदन्तः । 'तिरियं केवइए गाविसाए के प्रमाणवाले समय में की जाती है उसी प्रकार से यहां तीन चुटकी पजाने के प्रमाणवाले समय में उस संपूर्ण जंबूढीप की प्रदक्षिणा २१ पार की जाती है सारांश ऐसा है कि कोई महद्धिक आदि विशेषणोंवाला देव इस संपूर्ण जम्बूद्वीप की, कि जिसकी परिधि ३१६२२७ योजन की, और ३ को १२८ धनुप एवं १३॥ अंगुल की है तीन चुटकी बजाने में जितना समय लगता है उतने समय में २१ घार प्रदक्षिणा कर लेना तो जैसी ग्रह शक्ति देव की है ऐसी ही शीघ्रगमन की शक्ति जंघाचारणमुनि की रोती है। और हनना विशाल क्षेत्र उसकी इस शीघ्रनावाली गति का विषय होता है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'जंघाचारणस्स णं भंते ! तिरियं०' हे भदन्त ! संघा. વગાડવાના પ્રમાણુવાળા સમયમાં કરવામાં આવે છે. એ જ પ્રકારથી અહિયાં ત્રણ ચપટી વગાડવાના પ્રમાદાવાળા સમયમાં તે સંપૂર્ણ જંબૂઢીપની પ્રદક્ષિણા ૧ એકવીસ વાર કરવામાં આવે છે. આ કથનનો રારા એ છે કે કોઈ મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષાવાળે દેવ આ પૃ જંબૂટીપની કે જેની પરિષિ (ધરો) ૩૧૬૨૨૭ વ લ ળ ડાર બને સતાવીસ પેજનની અને
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-शरणास मोरिया
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