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भगवतासूत्र
भगवतीस्त्र चतुःपष्टयो भवन्ति सर्वेषां संफळनया, षट्स्पर्शानविकृत्य चतुरशीत्यधिकशतत्रय (३८४) भङ्गा भवन्तीति ।मु० ८॥
चादरपरिणतानन्तमदेशिकस्कन्धे षट्स्पर्शान्तस्य विचारं कृत्वा तदनन्तरं सप्तस्पर्शान विचारयितुमाह-'जइ सत्तफासे' इत्यादि ।
मूळम्-'जइ सत्तफासे सवे कक्खडे देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे१, सल्वे कक्खडे देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसा निद्धा देसा लुक्खा४, सवे कक्खडे देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसा उलिणा देसे निद्धे देसे लुक्खे४, सवे कक्खडे देसे गरुए देसेलहए देसा सीया देसे उलिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे४, सो कक्खडे देसे गरुए देसे लहुए देसा सीया देसा उसिणा देसे गिद्धे देसे लुक्खे४, सचे ते सोललभंगा भणियबा १६। सवे कक्खडे देसे गरुए देसा लहुया देले सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे, एवं गरुएणं एगत्तगेणं लहुएणं पहुत्तेणं एए वि सोलस भंगा१६॥ लवे कक्खड देसा गरुया देसे लहुए देसे लीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुकले, एए वि सोलस भंगा भाणियबा१६। सम्बे कक्खडे देसा गरुया देसा लहुया देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे, एए वि सोलस भंगा भाणियबा१६ । एवमेव से सब भंग मिलकर ३८४ हो जाते हैं। ये ३८१ भंग पादरपरिणत अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध में षट् स्पर्शो को आश्रित करके हुए हैं ऐसा जानना चाहिये ॥८॥
ષષ્ઠીનાં ભંગો કુલ મળીને ૩૮૪ ત્રણસે ચોર્યાશી થાય છે. એ ૩૮૪ ત્રણ ચોર્યાશી ભંગ બાદર પરિણત અનન્ત પ્રદેશવાળા સ્કંધના છ સ્પર્શ પણામાં " થાય છે. તેમ સમજવું. સૂ૦ ૮