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________________ ५ . , . भगवतीस्त्रे उष्णः सर्वो रूक्षः देशो सुरुको देशा लघुकाः २, सर्वः कर्वशः सर्व उष्णः सर्वा रूक्षी देशा गरुकाः देशो लघुक: ३. मः कर्कश: स्वं उष्णः सर्या रूक्षः देशा गुरुका देशा लघुकाः ४ (१६) हदेवं कशरतु सर्वत्र वाच्यः, शीतस्निग्धयोः व्यत्यासेन गुरुकलघुकयोरेकत्वानेकत्वाभ्यां षोडश भङ्गा जाताः १६। एवं कर्कशस्थाने मृदुकं कृत्वा षोडश भङ्गाः कर्तव्याः १६ । एवं द्वात्रिंशद्भङ्गा भवन्ति सकता है अथवा-'सर्वः फर्कशा, मवः ३गः, सर्भे रूक्षः देशो गुरुकः, देशा लघुकाः २' सर्वाश में वह कर्कश, सर्वाश में उष्ण, सर्वांश में रुक्ष एकदेश में गुरु और अनेक देशों में लघु स्पर्शवाला हो सकता है २, अथवा-'सर्वः कर्फ शः, सर्व उष्णः सों रूक्षा, देशाः गुरुकाः, देशः लघुका ३' सःश में वह कर्कश, सर्वाश में उग, सर्वांश में रुक्ष, अनेक देशों में गुरु और एकदेश में लघु स्पर्शवाला हो सकता है ३, अथवा-'सर्वः कर्कशः, सर्व उण: सोंरक्षः, देशाः गुरुकाः, देशाः लघु काः ४' सर्वाश में वह कर्कश, सर्वांश में उष्ण, सर्वाश में रूक्ष अनेक देशों में शुरु और अनेक देशों में लघु स्पर्शवाला हो सकता है ४ इस प्रकार से ये १६ अंग-आठ पहिले के और आठ ये. कर्कश की सर्वत्र प्रधानता से एवं शीत स्पर्श के व्यत्यास से और गुरु लघु में एकत्व और अनेकत्व करने से हुए हैं इसी प्रकार के १६ भंग कर्कश के स्थान में मृदु स्पर्श के निक्षेप से और पूर्वोक्त इन्हीं सघ पदों को यथाक्रम रख करके बन जाते हैं। इस प्रकार से ये सब छ. १ मा त 'सर्व: कर्कशः सर्व उगः सर्वो रूक्षः देशो गुरुकः देशाः लघुकाः२' सशिथी त ४४२ २५शवाजी सर्वाशयी १५शवाजी साશથી રૂક્ષ સ્પર્શવાળો એક દેશમાં ગુરૂ સ્પર્શવાળો અને અનેક દેશોમાં લઘુ पशवाणी डाय छे. २ मया ते 'सर्व: कर्कशः सर्व उष्णः सर्वो रक्षः देशा' गुरुकाः देशः रघुकः३' पाताना सर्वा शथी ४४ २५शवाणी साशयी ઉsણું સ્પર્શવાળ સર્વાશથી રૂક્ષ સ્પર્શવાળી અનેક દેશમાં ગુરૂ સ્પર્શવાળો मन मे देशमा मधु २५शवाजी साय छे. 3 अथवा ते 'सर्वः कर्कशः सर्व उष्णः सर्वो रूक्ष. देशाः गुरुकाः देशाः लघुकाः४' पोताना सशिथी त ४४श સ્પેશવાળે સર્વાશથી ઉષ્ણુ સ્પર્શવાળે સર્વાશથી રૂક્ષ સ્પર્શવાળો અને અનેક દેશથી ગુરૂ સ્પર્શવાળો અને અનેક દેશોથી લઘુ સ્પર્શવાળો હોય છે. ૪ આ પ્રમાણે આ સોળ ભેગે છે કે જેના આઠ ભંગ પહેલા બતાવ્યા છે અને આઠ આ ફર્કશ સ્પર્શની બધે જ મુખ્યતા રાખીને અને શીત સ્પર્શના ફેરફારથી
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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