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________________ भगवतोत्रे ७४६ शेषाणामेव वनान्तां चाश्रित्य पश्चदशों भङ्गः १५ । 'सिय कालगा य नीलगा य लोहियए य ढालिए य सुकिल्लर य १६' स्यात् काल व नीलाच लोहितश्व हारिद्र शुक्थेति प्रथम द्वितोप पोहुवचनान्ततां शेष णामेकवचनान्तां चाश्रित्य पोडशो नङ्गो १६ भवतीति । 'एए सोलसगंगा' एने पोडश भंगा भवन्ति, 'एवं सम्यमे दुयन- विषय - चउक-पंत्रम संजोगेणं दो सोला भंगसया भवंति एवं सर्वे एते एक-द्विक- त्रिक-चतुष्कपश्चकसंयोगेन छ पोडश भङ्गशते भवतः पोडशाधिकशतद्वयमाणा भङ्गा मन्दीति भावः । तथाहि असंयोगिनः पञ्चभङ्गाः ५, द्विसंयोगिनचत्वारिंशद् भङ्गाः ४०, त्रिकसं रोगिनोऽशीतिर्भङ्गाः ron प्रदेश लोfer वर्णवाले, एक प्रदेश पीले वर्णवाला और एक प्रदेश शुक्ल वर्णवाला हो सकता है इसमें प्रथमपद में और तृतीयपद में बहुवचनता और शेषपदों में एकवचनता की गई है 'सिय कालगा च, नीलगाय, लोहियए य, हालिए य, सुक्किल्लए थ १६' यह सोलहवां भंग है इसके अनुसार उसके अनेक प्रदेश कृष्ण वर्णवाले, अनेक प्रदेश नीले वर्णवाले, एक प्रदेश लोहित वर्णवाला, एक प्रदेश पीले वर्णवाला और एक प्रदेश शुक्ल वर्णवाला हो सकता है. इस भंग में प्रurपद में और द्वितीय पद में बहुवचनता और शेषपदों में एकवचनता की गई है 'एए सोलस भंगा' ये सब १६ भंग हैं 'एवं सव्वमेए एक्का - दुयग-तियण - चउक्कग-पंचग संजोगेणं दो सोला भंगसया भवति' इस प्रकार वर्णविपयक कुल भंग एक वर्ण के, एवं दो वर्णों, तीन वर्णों, चार वर्णों, एवं पांच वर्णों को मिलाकर यहाँ पर २१६ होते हैं वे इस प्रकार - एक वर्ण के अनी भंग ५, दो वर्णों के संयोगजन्य भंग ४०, तीन वर्णों के संयोगजन्य भंग ८०, चार वर्णों के संयोगजन्य કોઇ એક પ્રદેશમાં પીળા વઘુ વાળો ઢાય છે તથા કેઈએક પ્રદેશમાં સફેદવણુ વાળો હાય છે. આ ભગમાં પડેલા અને ત્રીજા પટ્ટમાં મહુવચન અને माडीना होभां श्वथन्नो प्रयोग ये छे. १५ ' सिय कालगा य, नीलगा य, लोहिया य, हालिदए य, सुकिल्लर य १६ ते पोताना अने४ प्रदेशाभां કાળા વણુ વાળા હોય છે. અનેક પ્રદેશેમાં નીલ વવાળા હાય છે. કાઈ એક પ્રદેશમાં લલ વણુ વાળા હાય છે. એક પ્રદેશમાં પીળા વણવાળા હાય છે, અને કોઇ એક પ્રદેશમાં સફેદ વણ વાળા હૈાય છે આ ભગમાં પહેલા અને ખીજા પદમાં अडुवयन भने माडीना पट्टी शेश्वरानी अहेश छे 'एए खोडल मंगा' मा रीते मा ठुट्स सोग भगे। छे, 'एक' सन्त्रमेए एक्कग- दुयग-तियग- चउक्कग - पचग-सजोगेणं दो सोला गया भवति' मा रीते वर्षा समाधी मे वार्जुना भने मे होना ત્રણ વર્યાં, ચાર વર્ણો અને પાંચ ત્રોંના કુલ ભગો અહિયા ૨૧૬ ખસેા સેળ
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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