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'अमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०४ षटूप्रदेशिकस्कन्धे वर्णादिनिरूपणम् ६७९ भङ्गाः षोडश१६, चतुःसंयोगिनोऽपि भङ्गाः पोडश, तदेवं पट्त्रिंशद्वङ्गाः३६, स्पर्शविषये पञ्चमदेशिकस्कन्धस्य भवन्तीति पञ्चमदेशिकस्कन्धयकरणम् ॥मू० ३॥
पञ्चमदेशिकस्कन्धस्य वर्णगन्धरसस्पर्मान विभागशो दर्शयित्वा षट्पदेशिक स्कन्धस्य वर्णगन्धरसस्पर्शान् दर्शयितुं पश्यन्नाह-'छप्पएसिए थे' इत्यादि,
मूलम्।-छप्पएलिए णं भंते! खंधे कश्चन्ने कइगधे कहरसे कइफासे पन्नते? एवं जहा पंचपएलिए जाव लिय चउफाले एन्नते। जइ एगवन्ने दुवन्ना जहा पंचपएसियस्त। जइ तिबन्ने सिय कालए य नीलए य लोहियए य, एवं जहेब पंचपएसियस्त सत्त भंगा जाब लिय कालगाय नीलगाय लोहियए 'य७, सिय कालगाय नीलगाय लोहियगा य८, एए अटू भंगा। एवमेए दसतियासंजोगा, एस्केक्कए संजोगे अटू भंगा एवं सठचे वितियगसंजोगे असीति भंगा। जब चउवन्ने सिय कालए य नीलए य लोहियए य हालिइए य १, सिय कालए य नीलए य लोहियए य हालिदगा य२, लिय कालए य नीलए य लोहियगाय हालिदए य ३, सिय कालए य नीलए य लोहियगा य हालिदगा य४, लिय कालए थ नीलगाय लोहियए य हालिए य५, सिय कालए य नीलगाय लोहियए य हालिदगा य ६, सिय कालए य नीलगाय लोहिषगा य हालिहए य ७, सिय , 'कालगा य नीलए य लोहियए य हालिहए य८, सिय कालगा 'द्विकसंयोगी ४, विक्षसंयोगी १६ और चतुः संयोगी मी १६ ये सब ३६ भंग स्पर्श के विषय में पंच प्रदेशिक स्कन्ध के होते हैं ॥स्तू० ३॥ - સગી ૧૨ સેળ ભંગ તથા ચાર સગી ૧૬ સેળ ભેગે એ રીતે આ ३६ . थाय छे. ॥सूत्र ३॥