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भगवतीस ५७८ स्निग्धौ देशो रूक्ष इति तृतीयः ३ ! उष्णत्वमाश्रिय भङ्गाः पदयन्ते 'सव्वे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे' सर्वउष्णो देश: स्निग्धो देशो रूक्षः सर्वाशे उष्णता एको देशः स्निग्धस्तदपरो देशो रूक्ष', 'पत्य वि भंगा तिन्नि' अत्रापि भङ्गास्त्रयः यथा सर्व उष्णो देशः स्निग्धो देशो रुक्ष इति प्रथमः १, सर्व उप्णो तथा उसके दो अंश स्निग्ध हो सकते हैं और एक अंश उसका रूक्ष हो सकता है। ये ३ भंग शीत स्पर्श को मुख्य कार के एवं स्निग्ध और रूक्ष गुणों को उसके साथ योजित कर के प्रकट किये गये हैं ३।अब उष्ण स्पर्श को मुख्य करके और स्निग्ध रूक्ष पर्श को उसके साथ योजित करके अंग प्रकट किये जाते हैं-'सचे उसिणे, देसे निद्धे देसे लुक्खे' वह सर्व देश में उष्ण हो सकता है, एक प्रदेश में स्निग्ध स्पर्शवाला हो सकता है तथा एक परिणाम वाले दो देशों में एकत्व की विवक्षा से वह एक देश में रूक्ष भी हो सकता है १ यह प्रथम भंग है 'सच्चे उसिणे देले निद्ध देखा लुक्खा' सर्व उरः देश स्निग्धो, देशौ रूक्षो' यह द्वितीय भंग है इस में वह सर्वरूप में उष्ण हो सकता है एक देश में स्निग्ध हो सकता है और दो देशो में रूक्ष हो सकता है यहां तृतीय पद को अनेक वचनान्त किया गया है २, द्वितीयपद को अनेक वचनान्त करने पर तृतीय भंग इस प्रकार से है 'सबने उलिणे देले निद्ध देसे लुस्खे' सर्वः उष्णः, देशाः स्निग्धः देशो रूक्ष: इस अंग में उसके सर्व अंश तीनों प्रदेश उष्ण हो सकते हैं दो प्रदेश स्निग्ध हो सकते हैं और एक प्रदेश रूक्ष भी हो તેના બે અંશે સ્નિગ્ધ હોઈ શકે છે તથા એક અંશ તેનો રૂક્ષ હોઈ શકે છે. શીત સ્પર્શને મુખ્ય બનાવીને અને સ્નિગ્ધ અને રૂક્ષ ગુણોને તેની સાથે ચોજીને આ ત્રણ ભાગ બતાવ્યા છે.
હવે ઉg પર્શને મુખ્ય બનાવીને અને સ્નિગ્ધ તથા રૂક્ષ સ્પર્શને तनी साथे याने म' नावामा मावे छ. 'सन्चे उसिणे, देसे निद्ध देसे लुम्खेत सशथी BY २५शवाणो ४ श छे से प्रदेशमा निय સ્પર્શવાળ હોઈ શકે છે. તથા એક પરિણામવાળા બે પ્રદેશમાં એકત્વની વિવેક્ષાથી તે એક દેશ માં રૂક્ષ પણ થઈ શકે છે. આ રીતે આ પહેલે ભંગ છે.
व मी ममता छ.-'सव्वे उसिणे देसे निद्धे देसे लुस्खे' सर्व उष्णः देशः स्निग्धः देशो रूम' मी मम मेम सतावे छेस ३५थी પર્શવાળો હોઈ શકે છે અને તે એક દેશમાં સ્નિગ્ધ સ્પર્શવાળે પણ હાઈ અને બે દેશોમાં રૂક્ષ સ્પર્શવાળે હોઈ શકે છે. આ ભંગમાં ત્રીજા ચરણને