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भगवती सूत्रे
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म्वतायां तु एकत्वानेकत्वाभ्यां त्रयो भङ्गा भवन्ति तानेव दर्शयति- 'सिय सुभिगंधेसि गंधे' स्यात् सुरभिगंधः त्रिष्वपि प्रदेशेषु सुरभिगन्धस्यैव सद्भावात् स्वाद् दुरभिगन्धः प्रदेशश्रयेऽपि दुरभिगन्धस्यैव सद्भावात्तदेव द्वौ भङ्गौ २, 'जइ दुगंधे सिय सुरभिगंधे य दुरभिगंधे य भंगार' यदि द्विगन्धस्तदा स्यात् सुरferre दुरभिगन्धश्चेति त्रयो भङ्गाः ३ । 'रसा जहा बन्ना' रसा यथा वर्णाः । त्रिपदेशिकस्कन्धस्य वर्णविपये यथा भङ्गाः कथिताः असंयोगे पञ्च, द्विकसंयोगे दिखलाते हैं - 'जह एगगंधे०' यदि त्रिप्रदेशिक स्कन्ध में एक गंध होना है तो या तो उस में सुगंधि हो सकती है या उस में दुरभिगन्ध हो सकता है इस प्रकार से एक गंध के विषय में ये दो भंग होते हैं त्रिप्रदेशिक
ध के तीनों प्रदेशों में जब सुरभिगंध का हो सद्भाव माना जावेगा तब तो सुरभिर्गंध विषयक एक भंग होगा और जब उनमें केवल एक दुर भिगंध का ही सद्भाव माना जावेगा तब दुरभिगंध विषयक एक भंग होगा इस प्रकार से एकत्व में दो विकल्प होते हैं जब उस त्रिप्रदेशिक स्कन्ध में दोनों गंध गुण है ऐसा कहा जाता है तो इस में केवल एकही भंग होता है यही बात 'जह दुगंधे लिय सुरभिगंधे य दुरभिगंधे य ३' इस पाठ द्वारा व्यक्त की गई है क्योंकि इस वक्तव्यता में उस में सुरभिष और दुरभिगंध दोनों गंध रहता हैं । 'रखा जहा वन्ना' रस सम्बन्धी भंग संख्पा प्रकट करने के लिये सूत्रकार ने यह सूत्र कहा है इससे यह कहा गया है कि इस त्रिप्रदेशिक स्कन्ध को वर्ण संबन्धी भंग संख्या
'जइ एग गंधे० ' ले यु अशवाजा धभां मे गंध होय छेत તેમાં સુગંધ શુશુ હોઇ શકે છે અથવા દુર્ગંધરૂપ એક ગુણ હાઇ શકે છે. આ રીતે એક ગંધના વિષયમાં એ ભંગ અને છે. ત્રણ પ્રદેશવાળા સ્કંધના ત્રણે પ્રદેશમાં જો સુંગધ ગુણુ જ માનવામાં આવે ત્યારે સુગંધ સખ‘ધી એક ભંગ થશે અને જ્યારે તેમાં એક દુધ શુશુ જ માનવામાં આવે ત્યારે દુધ વિષચક એક ભગ બનશે આ રીતે એક ણુમાં એ વિકલ્પા બને છે. અને જ્યારે તે ત્રણ પ્રદેશી સ્કંધમાં અને ગધ ગુણુ છે તેમ કહેવામાં આવે ते। तेनेा ठेवण ये४ ४ लौंग भने छे. ४ वात 'जइ दुर्गंधे सिय सुरभिगंधे य दुरभिगंधे य३' मा पाउथी मतावेस हे. मा उथनथी तेमां सुत्रध भने दुर्गध मे गरौंध रहे है तेभ ताभ्यु' हे 'रमा जहा वण्णा' रस समधी ભંગાની સખ્યા ખતાવવા સૂત્રકારે આ સૂત્ર કહ્યુ છે આ સૂત્રથી એ વાત કહી છે કે આ ત્રણ પ્રદેશવાળા સ્કંધમાં વણુના સબધમાં જે રીતે ભગાની