________________
प्रमेयन्द्रिका टीका श०२० उ०१ सू०१ द्वीन्द्रियनामकप्रथमोद्देशनिरूपणम् ४९३ इति एकेषां संझिनो नो विज्ञातं नानात्वं यथोक्तरूप वध्यवधकादिरूपमिति भावः । 'उववाओ सबओ' उपपात एषां जीवानां सर्वतः 'जाव सबट्टसिद्धाओ' यावत् सर्वार्थसिद्धात् उपपात: आगमनं स सर्वस्मादेव स्थानात् भवतीति, 'ठई जहन्नण अंतोमुहुत्त स्थितिर्जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तम् 'उको सेणं तेत्तीस सागरोवमाई' उस्कृष्टतः स्थितिस्त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमाणि 'छ समुग्धाया केवलिबाना' पञ्चेन्द्रिय जीवानां पट्समुद्घाता भवन्ति केवलिसमुद्घातवर्जिताः, केवलिसमुद्घातं परित्यज्य अन्ये पट्समुद्घाता भवन्तीति, 'उवट्टणा सव्वत्थ गच्छंति' उद्वर्तना सर्वत्र गच्छन्ति, 'जाव सबसिद्धत्ति' यावत् सर्वार्थसिद्ध इति ते पञ्चेन्द्रियनीवाः, षध्यघातक के भेद से रहित होते हैं तथा जो संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीव होते हैं उन्हें ही वध्यघातक भेदका ज्ञान होता है यही बात इस 'जेसिपिणं' इत्यादि सूत्र द्वारा प्रकट की गई है। 'उववाओ सयओ' का मतलय ऐसा है कि इन जीवों में सब स्थानों से आकर जीन उत्पन्न होते हैं 'जाव सम्वट्ठ सिद्धाओ' यावत् सार्यसिद्ध तक के जीव भी इन पञ्चेन्द्रिय जीवों में आकर जन्म लेते हैं इस प्रकार से चारों गतियों के जीवों का इनमें उपपात कहा गया है । 'ठिई जहन्नेणं अंतो मुहत्तं' इनकी स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की होती है 'उक्कोलेणं तेत्तीसं सागरोवमाई' और उत्कृष्ट से ३३ सागरोपम की होती है यह ३३ सागरोपम की स्थिति सप्तमी भूमि के नारकों की अपेक्षा से या सर्वार्थसिद्धधिमाल के देवों की अपेक्षा से कही गई - जाननी चाहिये 'छस्समुग्धाया' केवलि समुद्घोत को छोडकर इनमें ६ समुद्घात होते हैं 'उन्चट्टगा सव्वत्थ गच्छंति' ये पञ्चेन्द्रिय હોય છે. તથા જે સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય જીવ હોય છે, તેઓને જ વધ્ય અને ઘાતક-મારનારનો ભેદ જાણવામાં હોય એજ વાત નહિ વિ ” ઈત્યાદિ સૂત્ર द्वारा मताव छ. 'उववाओ सव्व ओ' 2 पाने तु मे छे 3- मा ४ स्थानाथी मावीर 94 पन्त थाय छे. 'जाव सम्वसिद्धाओ' ચાવત્ સર્વાર્થસિદ્ધ સુધીના જીવે પણ આ પંચેન્દ્રિય જીવમાં જન્મ લે છે. આ રીતે ચારે ગતિવાળા જીને તેઓમાં ઉપપાત કહ્યો છે. “ जहन्नेणं अंतोमुहत्तं तेमानी स्थिति न्यथी मे मतभुत नी खाय छे. 'उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई' सन थी 33 तीस सागरापमनी स्थिति હેય છે. આ તેત્રીસ સાગરોપમની સ્થિતિ સાતમી ભૂમિના નારકેની અપક્ષાથી અથવા સર્વાર્થસિદ્ધ વિમાનના દેવેની અપેક્ષાથી કહેલ છે તેમ સમજવું. 'छ समुग्धाया' del समुदधातन छोडीन, तेममा ७ समुधात साय छे. 'उव्व