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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०९ सू०१ करणस्वरूपनिरूपणम् भदन्त ! 'कइविहे पन्नत्ते' कतिविधं प्रज्ञप्तम् वर्णकरणस्य कियन्तो भेदाः ? इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहे पन्नत्त' पश्चविधं प्रज्ञप्तम्-कथितम् 'तं जहा' तद्यथा 'कालवन्नकरणे' कृष्णवर्णकरणम् 'जाव मुकिल्लवन्नकरणे' यावत् शुक्लवर्णकरणम् अत्र यावत्पदेन नीलरक्तपीतवर्णानां संग्रहः, तथा च वर्णानां पञ्चविधत्वात् वर्णकरणमपि पञ्चविधं भवतीत्युत्तरम् । 'एवं भेदो' एवं भेदः, एवम्-कृष्णादिरूपेण भेदो वर्णानां कथितस्तथा गन्धादिष्वपि वक्तव्य इति, तथा च 'गंधकरणे दुविहे गन्धकरणं द्विविधं सुरभिगन्धकरणदुरभिगन्धकरणभेदात् 'रसकरणे पंचविहे' रसकरणं पञ्चविधम् तिक्तकटुकषायाम्लमधुरभेदेन रसस्य पञ्चविधत्वात् तत्करणमपि पश्चविधमेव भवपण्णत्ते' हे भदन्त ! वर्णकरण कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभुने कहा है-'गोयमा ! पंचविहे पनत्ते' हे गौतम ! वर्णकरण पाँच प्रकार का कहा गया है जो इस प्रकार से है-'कालबनकरणे जाय सुक्किल्लवन्नकरणे' कृष्णवर्णकरण थावत् शुक्लवर्णकरण यहां यावत्पद से नील, रक्त और पीतवर्णों का ग्रहण हुआ है इस प्रकार वर्गों की पंचविधता से इनके करणों में भी पंचप्रकारता कही गई है । 'एवं भेदो' इस प्रकार से यह कृष्णादिरूप से वर्गों का भेद जैसा कहा गया है वैसा ही गन्धादिकों में भी कह लेना चाहिये तथा च-'गंधकरणे दुविहे' गंधकरण सुरभिगंधकरण और दुरभिगन्धकरण के भेद से दो प्रकार का होता है 'रसकरणे पंचविहे पण्णत्ते' रस-तिक्त, कटु, कषाय, अम्ल और मधुर के भेद से पांच प्रकार का होता है इसलिये रखकरण छ १ मा प्रश्न उत्तरमा अाउछ है-'गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते' है गौतम १४२६५ पांय ४१२नु छ. २ मा प्रमाणे छ. 'कालवण्णकरणे जाव सुस्किल्लवण्णकरणे' ३ व ४२६५ शुस १ ४२११ मलियां થાવત્ પદથી નીલ રક્ત અને પીળા વણે ગ્રહણ કરાયા છે. એ રીતે વર્ણના पांय ४२पाथी मा तना ४२ मा ५ पांय Pा हे छे. 'एवं भेदो' मा शत मानीव विमेरे २२ ना हो ४ा छे. ते प्रमाणे गध विगैरेभा पy मेह! सभा . ते छ. 'गंधकरणे दुविहे' સુરભિ ગંધ કરણ સુંગધ અને સુરભિ ગંધ કરણના ભેદધી ગંધ કરણ એ १२ना डोय छे. 'रसकरणे पचविहे पण्णत्ते' तिस-तीमा ४- षाय તુ અ-ખાટે અને મધુર-મીઠે એ ભેદથી રસે પાંચ પ્રકારના હોય છે,
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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