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भगवतीसूत्रे
કરદ
इत्यर्थः । 'नेरइया णं भंते' नैरयिकाणां भदन्त ! कइविहा कम्मनिवत्ती पन्नत्ता' कतिविधा कर्मनिवृत्तिः मज्ञता, हे भदन्त ! नारकजीवानां कति कर्मनिवृत्तयो भवन्तीति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'अद्वविद्या कम्म निव्वती पद्मत्ता' अष्टविधा कर्मनिवृत्तिः प्रज्ञप्ता, 'ढं जहा' द्यथा-नाणावरणिजकम्मनिष्पत्ती जाव अंतराइयकम्मनिष्यती' ज्ञानावरणी वकर्मनिर्वृतियवदन्तरायिककर्मनिर्वृत्तिः, अत्र यावत्पदेन-दर्शनावरणीचादीनां संग्रहः, 'एवं वरणीय आदि के भेद से वह कर्मनिर्वृति आठ प्रकार की कही गई है ऐसा जानना चाहिये ।
अब गौतम यह कर्मनिर्वृप्ति नारकादि जीवों के कितने प्रकार होती है ऐसा प्रश्न 'नेरयाणं भंते! कदविहा कम्मनिव्वन्ती पन्नत्ता' इस सूत्र द्वारा प्रभु से पूछ रहे हैं - हे भदन्त ! नैरयिक जीवों के कर्मनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! अट्ठविहा०' हे गौतम ! नैरयिक जीवों के कर्मनिर्वृत्ति आठ प्रकार की ही कही गई है अर्थात् कर्मनिवृत्ति के जो भेद कहे गये हैं- वे सब ही नैरधिक जीवों के होते हैं एक भी कम भेद वहां नहीं होता है यही बात 'तं जहा' जैसे'नाणावर णिज्जकस्मनिव्यत्ती जाव अंतराइयकस्मनिन्नप्ती' ज्ञानावरणी कर्मनिवृत्ति यावत् अन्तरायकर्मनिवृत्ति- इस सूत्रपाठ द्वारा व्यक्त की गई है यहाँ यावत्पद से दर्शनावरणीयादि कर्मों की निवृत्ति का ग्रहण અંતરાયક્રમ નિવૃત્તિ આ રીતે જ્ઞાનાવરણીય, દનાવરણીય વિગેરે ભેદથી કમનિવૃત્તિ આઠ પ્રકારની કહી છે તેમ સમજવું.
હવે ગૌતમામી આકનિવૃત્તિ નાકાદિ જીવાને કેટલા પ્રકારની हाय छ ? प्रमाने प्रश्न भगवान् ने पूछे छे, 'नेरइया णं' भते ! कइ विहा कम्मनिव्वन्ती पण्णत्ता' हे भगवन् नारीय लवाने उटा प्रहारनी उर्भनिर्वृत्ति नही छे? तेना उत्तरभां अलु ! छे ! - 'गोयमा ! अट्ठविहा' हे गौतम! नैरयिङ જીવેને આઠ પ્રકારની કÖનિવૃત્તિ કહેવામાં આવી છે. અર્થાત્ કનિવૃત્તિના જે આઠ ભેદ કહ્યા છે તે બધા જ નૈયિક જીવાને થાય છે. એજ વાત 'तंजहा' ? - 'नाणावरणिज्जकम्मनिव्वन्त्ती जाव अंतराइयकम्मनिव्वन्त्ती' ज्ञानाવરણીય ક્રમ નિવૃત્તિ યાવત્ અંતરાય ક્રમનિવૃત્તિ આ સૂત્રપાઠ દ્વારા