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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०७ १०१ असुरकुमाराद्यावासनिरूपणम् ४११ शेपमेतद्भिन्न सर्वमपि तदेव-भसुरक्षुमारसूत्रोक्तमेव । अवापि बहवो जीयाः - पुद्गलाथ उत्पधन्ते विपद्यन्ते, एते विमानावासा द्रव्यार्थतया शाश्वतः वर्णादि पर्यायैरशाश्वताश्चेति । 'सोहम्मे णं मंते ! कप' सौधर्मे खलु भदन्त ! कल्ये 'केवइंया विमाणावासमयसहस्सा पन्नत्ता' क्रियन्ति विमानावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'वत्तीसं विमाणावाससय सहस्सा पन्नत्ता' द्वात्रिंशत् विमानावासशतसहस्त्राणि द्वात्रिंशल्लक्षाणि मज्ञप्तानि । 'ते ण भंते । किं पया पन्नता' ते खलु भदन्त ! किं मयाः प्रज्ञप्ता:? भगवानाह'सबरयणामया' सर्वरत्नमया: 'अच्छा' अच्छाः 'सहा' इत्यादि विशेषणानि कहे गये विशेषणों वाले हैं। बाकी का और सब इनके विषय का कथन असुरकुमारों के भवनावास के जैसा ही है। यहां पर भी अनेक जीव और पुदगल उत्पन्न होते हैं और विपन्न-नाश होते हैं। द्रव्यार्षिकनय के अभिप्राय से नित्य हैं और पर्यायार्थिक दृष्टि के अभिप्राय से थे अनित्य भी है। न सर्वथा नित्य हैं और न सर्वथा अनित्य है, किन्तु कथंचित् ही ये नित्य और अनित्य है।' सोहम्मे णं भंते । कप्पे' यदि तुम ऐसा प्रश्न करो कि सौधर्म कल्प में कितने लाख विमानायास है ? तो हे गौतम ! इस प्रश्न को उत्तर ऐसा है कि वहां 'पत्तीसं विमाणा०' ३२ लाख विमानावास है । तेणं भंते । किं मया' ये किस वस्तु के बने हुए हैं ? तो इसका ऐसा उत्तर है कि ये सब 'सम्वरयणामया' सर्व प्रकार ले रत्नों के बने हुए हैं। साथ में 'अच्छा०' ये सब स्वच्छ हैं, चिकने हैं इत्यादि पूर्वोक्त विशेषणोंवाले हैं। કથન અસુરકુમારના ભવનાવાસોના વર્ણનની જેમ જ છે. આ વિમાનવામાં પણ અનેક જીવો અને પુદ્ગલે ઉત્પન્ન થાય છે. અને મરે પણ છે. દ્વાર્ષિક નયના મતથી એ વિમાનાવાસો શાશ્વત-નિત્ય છે. અને પર્યાયાર્થિક નયના મતથી એ વિમાનવાસે અશ.શ્ચત-અનિત્ય છે. અર્થાત્ સર્વથા નિત્ય પણ નથી અને સર્વથા અનિત્ય પણ નથી. પરંતુ એ કથંચિત્ જ નિત્ય છે અને કર્થચિત્ એ અનિત્ય છે. 'सोहम्मे ण भवे! कप्पे' के समापन सौध ४६५i seen on विमान ? तना त्तम प्रभु है छ -'बत्तीसं विमाणा' ७ गौतम सोध८५i 3२ मत्रीसम विमानापास ॥ छ. 'ते णभवे! कि મા” હે ભગવન તે વિમાનાવાસે કઈ વસ્તુથી બનેલા છે ? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ छतमा विमानावासो 'सव्वरयणामया०' सारथी रत्नाना भनेता 2. तम-१ ते सपा विमानापास 'अच्छा' २१२७ छे. १५४मय छ
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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