SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेय वन्द्रिका टीका शं०१९ उ०३ ५०३ पृथ्वीकायिकानां सूक्ष्मत्वनिरूपणम् ३४६ सबवायरे' अकायः सर्ववादरः 'आउक्काए सबवायरतराए' अकायः सर्ववादरतरकः एषु त्रिषु सर्वथा बादरत्वमकायस्यैव इति भगवत उत्तरमिति ३। 'एयस्सगं भंते !' एतस्य खलु भदन्त ! 'वेउकाइयस्स वाउकाइयस्स' तेजस्कायिकस्य वायुकायिकस्य मध्ये 'कयरे काए सचबायरें' एतयोयोमध्ये कतरः कायः सर्वबादरः ‘कयरे काए सव्यवायरतराए' कतरः कायः सर्ववादरतरका अनयोयोमध्ये सर्वापेक्षया अतिशयितबादरस्तेजस्काय एवेतिभावः ४ । पूर्वोक्तमेवार्थ प्रकारान्तरेण कथयन्नाह-'के महालए' इत्यादि । 'के महालए णं भंते !' कियन्महत् खल्ल भदन्त ! 'पुढवी सरीरे पन्नते' पृथिवीशरीरं प्रज्ञप्तम् हे भदन्त ! पृथिवीकायिकस्य शरीरं कियन्महदिति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! अणंताणं सुहुमवणस्सइकाइयाणं' अनन्तानां सूक्ष्मवायरे०' हे गौतम! इन तीन जीवनिकायों में अपूकायिक ही सब की अपेक्षा बादर और अतिशयरूप में बादतर है अर्थात् इन तीन जीवनिकायों में सर्वथा बादरता अप्रकायिक में ही है। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'एयरस णं भंते ! तेउकाइयस्स घाउकाइयस्त०' हे भदन्त तेजस्कायिक और वायुकायिक इन दो जीवनिकायों में कौन से जीवनिकाय में सर्वथा बादता और बादतरता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा० !' हे गौतम ! इन दोनों जीव. निकायों के बीच में सर्वापेक्ष अतिशयवादर तेजस्काय ही है अब गौतम 'इसी बात को प्रकारान्तर से प्रभु से पूछते हैं-'के महालए णं भंते ! पुढवीसरीरे पन्नत्ते' हे भदन्त ! पृथिवीकाधिक का शरीर कितना धडा कहा गया है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अणंताणं सुहुमयકાર્યોમાં અષ્કાયિકે જ સર્વની અપેક્ષાએ બાદર અને અતિશય રૂપથી બાદરતર છે. અર્થાત્ આ ત્રણે જવનિકાચામાં સર્વથા બાદરપણું અષ્ઠાયિકામાં જ છે. व गौतम पाभी प्रभु से पूछे छे ?-'एयस्स ण भंते ! तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स' 8 सपन तायि भने वायुयि मामे नियोमा ક્યા જવનિકાયમાં સર્વથી બાદરતરપણુ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે है-'गोयमा! गौतम! मा ३०४ भन्ने पनियोमा सपना અપેક્ષાથી અત્યંત બાદર તેજસ્કાયિક જ છે. હવે ગૌતમ સ્વામી આજ વાતને પ્રકારાન્તરથી પ્રભુને પૂછે છે કે'के महालए णं भंते ! पुढवी सरीरे पण्णत्ते' 3 लगवन् चियितुं शरीर है वि ४ छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४३ छ -'अणताणं
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy