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भगवती सूत्रे
'ते भए नए दुाि कुछत्था पत्ता ' से तब ब्राह्मण्येषु नयेषु शास्त्रेषु द्विविधा: - द्विमकारकाः कुलत्था भवन्ति, द्वैविध्यमेव दर्शयति- 'तं जहा ' इत्यादि । 'तं जहा ' तथा 'इत्थि कुलत्थाय धन्नकुलत्थान' स्त्रीकुलत्थाच धान्यकुलत्थाश्च कुलस्था इति संस्कृतेन कुले तिष्ठन्ति यास्ताः कुलस्था इति व्युत्पत्तिरिति यौगिकार्थाश्रयणे कुलस्थाः स्त्रियः " कुलस्थ" इति प्राकृतेन कुलत्थो धान्यविशेषः 'तत्थ णं जे ते इत्थिकुलत्था ते विविध पन्नत्ता' तत्र खलु या स्ताः स्त्री कुलस्थाः स्त्रीरूपाः कुलस्थाः ता विविधाः - त्रिप्रकारकाः प्रज्ञप्ता भवन्ति 'तं जहा ' तद्यथा 'कुलकन्नयाई वा कुलवहुयाई वा कुलमाउयाइ वा' कुलकन्यका इति वा कुन इति वा कुमातर इति । कुलकन्यका, कुलवधू, कुलमातृभेदेन कुलस्था त्रिविधा इतिभाव: 'तेणं समणाणं णिग्गंथाणं अभक्खेया' ततः ते बभण्णएनएस दुविहा कुलत्था पन्नत्ता' हे सोमिल ! ऐसा करने का कारण यह है कि तुम्हारे जो नय शास्त्र है उनमें दो प्रकार की कुलत्था होती है ऐसा कहा गया है । 'लं जहा' जैसे -' इत्थी कुलतथा य धनकु लत्था य' एक स्त्री कुलस्था और दूसरी धान्यकुलत्था 'कुले तिष्ठन्ति या स्ताः कुलस्था।' इस प्रकार के यौगिक अर्थ के आश्रयण करने पर संस्कृत में कुलस्था शब्द का अर्थ कुलीन नारी होता है और जब 'कुलस्या' पद का विचार प्राकृत से किया जाता है तो वह इस शब्द का अर्थ धान्यविशेष होता है। 'तत्थ जे जे ते इत्थि कुलत्था ते तिविहा पन्नत्ता' इनमें जो स्त्रील्प कुलत्या है वह तीन प्रकार की कही गई है ! 'त जहा जैसे 'कुचकायाह वा कुलबहुधाइ वा कुलमाउयाह वा' कुलक न्यका. कुलवधू और कुलमाना 'ते मं सरणाणं बियाणं अभक्खेघा'
प्रश्नना उत्तरभां प्रलु छे-से णूगं खोसिला ! वे बंभण्णरसु नरसु दुविहा कुठल्या पन्नत्ता' हे सेोभिस मे ं 'हेषानु र थे छे !-तभा ? नयशास्त्र छे, तेमां में अजरनी 'संस्था' हे छे. 'तंजहा' भ ' इत्थी - कुलत्थाय धन्न कुलत्था य' तेभा थे। श्री 'कुलत्था' 'कुले तिष्ठन्ति यास्ताः कुलस्था:' मा अश्वाथी स ंस्ङ्कृतभां ‘कुलस्थाः' मे पहने अर्थ सीन स्त्री मे प्रमाणे थाय छे भने न्यारे 'कुलत्था" पढना आत प्रभा विचार अश्वामां आवे तो थे पहनो अर्थ धान्य विशेष मे अभाये थाय छे 'तत्थ णं जे वे इत्थि कुलत्था वे तिविहा पन्नत्ता' तेमां ने स्वी३५ 'कुलत्था' छे ते त्राण अारती 'डेश्री छे. 'तंजहा' प्रेम है 'कुछकन्नयाइ वा, कुलबहुयाइ वा कुलमाच्या वा, डुस हुन्या, डुल वधू ने इस भाता 'ते णं समणाण' णिग्गंथाण अभक्खेया'
सत्था भने जील धान्य रीतना यौगिङ अर्थना माश्रय