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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ २०१० ५० ४ धर्मविशेषादिनिरूपणम् २५३ धन्नमासा ते दुविधा पन्नता' तत्र खलु ये वे धान्यमापास्ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा सत्थपरिणया य असत्थपरिणया २' तद्यथा शस्त्रपरिणताश्च अशस्त्र परिणताच शस्त्रेण वह्नयादिना परिणता अचित्तीभूता इति शस्त्रपरिणताः, वयादि शस्त्रेण अपरिणताः नाचिनीभूता अशस्त्रपरिणताः 'एवं जहा धन्नसरिसवया जाव से तेजद्वेण एवं यथा धान्यसरिसवया यावत् तत् तेनार्थेन यथा धान्यसरिसवे विचारः कृतस्तथैवेहापि करणीयः, अत्र यावत्पदेन 'तत्थ गं जे ते असत्थपरिणया ते णं समगाणं णिगंयाणं अभक्खेया 'इत्यारभ्य तत्थ णं के विषय में कहा गया वैशाही कथन भनके विषय में भी कर लेना चाहिये अर्थात शस्त्रबन्यादि द्वारा जो अचित्त कर दिये गये हों, वे शस्त्र परिणत हैं ।अशस्त्र परिणत जो धान्यमास है वे अभक्ष्य हैं । शस्त्रपरिणत में भी एषणीय एवं अनेषणीय दो प्रकार हैं जो धान्यमास शस्त्रपरिणत हो जाने पर भी अनेषणीय होते हैं तो साधुजनों को अभक्ष्य कोटि में कहे ही गये हैं और एषणीय ही धान्यमास भक्ष्यकोटि में कहे गये हैं परन्तु फिर भी एषणीय होने पर भी जोधान्यमाष अलब्ध हों वे अभक्ष्य
और जो लब्ध हों वे भक्ष्य कहे गये हैं। इस कारण हे सोमिल ! मैंने ऐसा कहा है कि धान्यमाष भक्ष्य भी होते हैं और अभक्ष्य भी होते हैं । इस प्रकार से धान्यलरिवल में जैसा विचार किया गया है उसी प्रकार का विचार यहां पर भी किया गया है ऐसा जानना चाहिये। तात्पर्य इस कथन का केवल ऐसा ही है कि धान्यमाप वे ही भक्ष्य कहे गये हैं जो शत्र परिणत होते हैं शस्त्र परिणत धान्यमाषों में भी सब हो धान्यमाषा भक्ष्य नहीं होते हैं किन्तु जो एषणीय धान्यमाष होते हैं वे ही भक्षणीय होते हैं एषणीय धान्यमाल भी लव ही एषणीय भक्ष्य नहीं होते हैं किन्तु इनमें जो याचित धान्यमाष होते हैं वे ही भक्षछ. 'सत्यारिणया' मा मे शख परिणत डाय छ, भने भी सशस्त्र પરિણત હોય છે જે પ્રમાણે ધાન્ય સરિસવના વિષયમાં કથન કરવામાં આવ્યું છે, તે જ પ્રમાણેનું સઘળું કથન આ ભાષના વિષયમાં પણ સમજી લેવું. અર્થાત્ શસ્ત્ર અગ્નિ વિગેરેથી જે અચિત કરી દેવાયા હોય છે તે શસ્ત્ર પરિણત છે. તથા અશસ્ત્ર પરિણત જે ધાન્ય માસ છે, તે અભક્ષ્ય છે. શસ્ત્ર પરિણુતમાં પણ એષય અનેષણીય એ રીતે બે પ્રકાર છે જે ધાન્ય માસ શસ્ત્રપરિ. પુત થવા છતાં પણ અનેષણય હોય છે, તે સાધુજનેને અભક્ષ્ય છે તેમ પહેલાં કહી જ દીધું છે. અને જે એરણીય ધાન્યમાષ છે તે જ સાધુજનેને ભય-આહારમાં ગ્રહણ કરવા લાયક કહ્યા છે. પરંતુ એષણીય હોવા છતાં