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भगवती सूत्रे
मति 'पडिनिक्खमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य 'पायविहारचा रेणं' पादविहारचारेण-पद्धयामेव न तु वाहनादिना 'रायगिहं नयरं जाव निम्गच्छ३' राजगृहं नगरं यावत् निर्गच्छति यावदात् मध्यमध्येन इति ग्राह्यम्' निग्गच्छिता' 'निर्गत्य 'तेर्सि अन्न उत्थियाण' तेपामन्ययूथिकानाम् ' अदूरसामंतेणं बीइवयह' अदूरसामन्ते व्यतिव्रजति, अन्ययुथिकानां नातिदूरेण नातिसमीपेन वा गच्छतीत्यर्थः ' 'तए णं ते अनउथिया' ततः खलु ते अन्ययूथिकाः 'मदुयं समणोवासयं' मडकं श्रमणोपासकम् 'अदूरसामंतेणं' अदुरसामन्तेन नात्यासन्नेन नातिदूरेण' बीइवयमाणं पासंति' व्यतित्रजन्तं - गच्छन्तम् पश्यन्ति 'पासिता ' अन्नमन्नं सहावेति' दृष्टा अन्योऽन्यं शब्दयन्ति आह्वयन्ति' 'सद्दावित्ता एवं व्यासी' शब्दयित्वा एवं वक्ष्यमत के थे अपने शरीर को अलंकृत किया । 'सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ' इसके बाद वह अपने घर से बाहर निकला । 'पडिनिक्खमित्ता' बाहर निकल कर 'पायविहारचारेणं' पैदल ही सवारी पर बैठकर नहीं । 'रायहिं नयरं जाव निग्गच्छछ' यह राजगृह नगर के ठीक बीचोबीच के रास्ते से होता हुआ चल दिया । 'यहां यावत्पद से 'मध्य मध्येन' इस पद का ग्रहण हुआ है । निग्गच्छित्ता' चलकर वह 'तेसि अनउत्थियाणं अदूरसामंतेणं बीहवयह' उन अन्ययूथिकों के पास से होकर निकला न वह उनके बिलकुल पास से ही होकर निकला और न उनके अधिक दूर से ही होकर निकला यही बात 'अदूरसामंतेणं' पद द्वारा प्रकट की गई है । 'तए णं ते अन्नस्थिया मद्दुयं समणोवासगं अदूरसामंतेणं वीइवयमाणं पासंति' जब उन अन्ययूथिकोंने अपने से थोड़ी सी दूर से होकर जाते हुए मद्रुक श्रावक को देखा तो 'पासित्ता' देखकर 'अन्नमन' सहावेति' आपस में उन्होंने एक दूसरे को बुलाया'
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पंडिणिक्खमइ" पोताना धरनी महार नीउज्या. "पडिणिक्खमित्ता" महार नीडजीने "पायविहारचारेणं" पगपाणी - ( वार्डन पर मेसीने नहीं ) " रायगिहं 'नयरं जाव निगच्छर' ते शनगृहना वस्योपस्यना भागेथा नीडज्यो. "निग्ग'च्छित्ता" नीणीने ते "तेखि अन्नउत्थियाणं अदूरसामंतेणं वीइवयइ" ते अन्य યૂથિકાની પાસેથી એટલે કે તેઓની મહુ નજીક નહીં અને તેમનાથી બહુ इ२ थए। नहीं तेवी रीते ते नीडल्या. "तए णं अन्नउत्थिया मदुयं समणोवासगे अदूरसामंतेणं वीइत्रयमाणं पासंति" क्यारे ते अन्ययूथ मे थोतानाथी थोडे इरथी नता सेवा भ श्रवने लेयेो तो "पासित्ता" तेने लेने "अन्नमन्नं सहावे'त्ति” परस्पर तेथे श्रेणीलने मोलाव्या. "सदावित्ता एवं