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भगपतीचे एवं खलु आर्या ! 'नीललेस्से पुढचीकाइए जाव अंतं करेई नीलळेश्यः पृथिवी. कायिको यावद् अन्त करोति, 'एवं काउलेस्सो वि' एवं कापोविकलेश्योऽपि 'जहा पुढवीकाइए एवं आउकाइए वि' यथा पृथिवीकायिक एवमकायिकोऽपि 'एवं वस्सइकाइए वि' एवं वनस्पतिकायिकोऽपि-कृष्णनीलकापोनिकलेश्य पृथिवीकायिकाकायिकवनस्पतिकायिकोऽपि योद्धव्य इति भावः । 'सच्चे गं एसम?' सत्यः खलु एपोऽर्थः, 'सेन भने ! सेवं भंते । ति तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! यद् देवानुप्रियेण कथितम् तदेवमेष-सत्यमे वेति कथयित्वा 'समणा णिगया समणं भगवं महावीर वदति नमसंति' श्रमणा निर्ग्रन्थाः श्रमणं भगवंत महावीर वन्दन्ते नमस्यन्ति, 'वंदित्ता नमंसित्ता' वन्दित्वा नमस्यित्वा जेणेव खल्लु अज्जो ! नीललेले पुढवीकाइए जाव अंत करेह' इसी प्रकार से हे आर्यो। जो नीललेश्यावाला पृथिवीकायिक जीव है वह यावत् समस्त दुःखों का अन्त कर देता है इस प्रकार कृष्णनीलकापोतलेश्यावाले पृथिवीकायिक अकायिक और वनस्पतिकायिक जीव यावत् समस्त दुःखों का अन्त कर देते हैं । 'सच्चे णं एसम?' वह अर्थ सत्य है। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' आप देशानुप्रियने जो कहा है वह सत्य ही कहा है २ इस प्रकार कहकर 'समणा निग्गंथा समणं भगवं महावीर वंदंति, नमसति' श्रमगनिन्थों ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना की, नमस्कार किया 'वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव मागंदियपुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छंति' वन्दना नमस्कार करके फिर वे माकन्दिक पुत्र अनगार के पास आये। वहां आकर के 'मागंदियपुत्तं०' माकन्दिक पुत्र अनगार को वन्दना की नमस्कार किया। 'वदित्ता नमंसित्ता एयमढे सम्म विणएणं भुज्जो २ खामें ति' वन्दना नमस्कार कर फिर “एवं खलु अज्जो नीललेस्पे पुढवीकाइए अंतं करेइ" मेरी प्रभारी माया જે નીલલેશ્યાવાળા પૃથ્વીકાયિક જીવે છે. તે પણ યાવત્ સમસ્ત દુઃખને मत ४२ छ. 'सच्चे णं एसम?" मा ४थन सत्य छे. सेवं भंते ! सेव भंते । ત્તિ” હે ભગવન્! આપ દેવાનુ-ચે જે કહ્યું છે તે સત્ય છે. આપનું કથન યથાર્થ छ मा प्रभाव डीन “समणा निग्गंथा समणं भगवं महावीरं वदति नमसंति" श्रमण भगवान महावीरने बना ४री नभ२४१२ या "वदित्ता नंमंसित्ता जेणेव मागदियपुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छति' बना नमार शन पछी तो मा ayनी पासे मा०या त्या मातीत मागंदियपुत्तं" भत्रि मनाने पहना 3री नमार र्या "वदित्ता नमंसित्ता एयंमद्रं सम्म विणएणं भुज्जो भुज्जो खामेति' पहना नभ६४१२ ४रीने ते पछीं