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________________ ____६६४ . भगवतीस्वे यति, यावत्पदेन भापते, प्रज्ञापयतीत्यनयोः ग्रहण कर्तव्यम्, 'एवं खलु: अज्जो' एवं खलु आर्या! 'काउलेस्से पुढवीकाइए जाव अंतं करे।' एवं खलु कापोतिकलेश्यः पृथिवीकायिको यावदन्तं करोति, अत्र यावत्पदेन माकन्दिकपुत्रप्रश्नवाक्यमध्याद् अवशिष्टस्य सर्वस्यापि वाक्यस्य संग्रहो भवतीति बोध्यम् । 'एवं खलु अज्जो!' एवं खलु आर्याः ! 'काउलेस्से आउकाइए जान अंत करेइ कापोविकलेश्योऽष्काथिको यावदन्तं करोति, 'एवं खलु अज्जो।' एवं खलु आर्या: ! 'काउलेस्से वणस्सइकाइए वि जाव अंतं करेई' कापोतिकलेश्यो वनस्पतिकायिकोऽपि यावदन्तं करोति, सर्वत्रापि यावत्पदेन 'काउलेस्से.. से 'भाषते प्रज्ञापयति' इन क्रियापदों का ग्रहण हुआ है। कि 'काउलेस्से पुढवीकाइए जाव अंतं करेइ' कापोतलेश्यावाला पृथिवीकायिक जीच यावत् समस्त दुःखो का अन्त कर देता है-यहां यावत् शब्द से माकन्दिक पुत्र अनगार के अवशिष्ट प्रश्नवाक्य का संग्रह हुआ है । 'एवं खलु अज्जो! काउलेस्से आउकाइए जाव अंत करेह' इसी प्रकार से हे आर्यो ! जो मान्दिकपुत्र अनगारने ऐसा कहा' है कि कापोतलेश्यावाला अकायिक जीव यावत् अन्त कर देता है। यहां पर भी यावत् शब्द से 'काउलेस्से हितो' पद से लेकर 'पच्छा सि.' ज्झइ' इस पद तक के पाठ को ग्रहण हुआ है । इसी प्रकार से माक न्दिक पुत्र अनगार ने जो ऐसा कहा है कि-'एवं खलु अज्जो। काउ. लेस्से वणस्सइकाइए' हे आर्यो! कापोतलेश्यावाला वनस्पतिकायिक जीव 'वि' भी जाव अंतं करेइ' यावत् अन्त कर देता है-यहां पर भी - यावत् शv४था "भाषते प्रज्ञापयति" मा यिापहोना सयड यया छ. "काउलेस्से पुढवीकाइए जाव अंतं करेइ" पातश्यापणा शिपाय: જીવ યાવત્સત દુખે અંત કરે છે. અહિયાં યાવત્ શદથી માકદિ પુત્ર मनगारा माडी प्रश्नपाध्यन सघड थयेछ "एवं खलु. अज्जो काठलेस्से आउकाइए जाव अंतं करेइ" से प्रभारी ७ मा मात्र અનગારે છે એમ કહ્યું છે કે કાપતવેશ્યાવાળે અપકાયિક જીવ યાવત્ અંત ४२ छ. मडियां ५ यावत् शपथी "कोउलेस्सेहिता" से पहथी .ava "पच्छा सिज्जइ" 2 ५६ सुधीना पानि स ख थये। छ. म शत.. भाजीपुत्र मनगारे रे मे ४ह्यु छ ? ' एवं खलु अज्जो काउलेस्से वणस्सई' काइए" ३ मा अपातोश्यावा 4 पति १ey "जाव अंतं करेइ" यावत् मत रे छे. महिपा यावत शथी. 'काउलेस्सेहिता" मे पहथा
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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