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________________ भगवती शितस्तेनैव रूपेण इहापि सत्र ज्ञातव्यम्, जम्बूदीपस्थितं भगवन्तम् अवधिज्ञानेन पश्पति, दृष्ट्वा समागतः । केवलं तत्राभियोगिकानां शक्रेण सहागमनं भगवत्पा झे न कथितम् इहतु दयंते एतद्वैलक्षण्यं पूर्वापेक्षया, एतदेवाह-'नवरं एत्थ आभियोगिया वि अस्थि' नवरम् अत्रामियोगिका अपि सन्ति शक्रेण सार्द्धम् आमि योगिका समागता इत्यर्थः, 'जाव वत्तीसविहं नट्टविहिं उवदंसेइ' यावद् द्वात्रिंशद्वियं नाट्यविधिमुपदर्शयति 'उबदंसेत्ता जाव पडिगए' उपदर्य नाट्यप्रकार मदर्य यावत्मविगतः, शक्रो देवेन्द्रो गतवान् तत्पश्चात् 'भंते त्ति भगवं गोयमे भदन्त इति भगवान गौतमः-हे भदन्त ! इत्येवं रूपेण भगवन्तं संवोध्य गौतमः 'समर्ण भगवं महावीरं जाव एवं वयासी' श्रमण भगवन्तं महावीरं यावदेवम् अवादीत्, अत्र यावत्पदेन वन्दते नमस्यपि वन्दित्वा नमस्थित्ता इत्यादीनां संग्रहो उसी रूप से सब कहना चाहिये, शक्रने अपने अवधिज्ञान द्वारा जम्बू द्वीपस्थित भगवान् को जब देखा तो देखकर वह उस समय आया पाडशक शतक के द्वितीय उद्देशक में शक के साथ आभियोगिकदेवों का आगमन भगवान के पास में नहीं कहा गया है परन्तु यहां वह कहा गया है यही बात 'नवरं अत्य आभिजोगियावि अत्थि' इस पाठ द्वारा प्रदर्शित की गई है। 'जाव बतीसहविहं णविहिं उपदंसेई' यहां आकर उसने यावत ३२ प्रकार की नाटयविधि दिखलाई 'उवदंसेत्ता जाव पडिगए' नाटयपकार दिखाकर पीछे चला गया, इसके बाद भंते त्ति भगवं गोयमे' हे भदन्त ! ऐसा कहकर गौतमने 'समणं भगचं महा. वोरं जाव एवं बयासी' श्रमण भगवान महावीर ले यावत् इस प्रकार से कहा-पूछा, यहां यावत्पद ले 'वंदा, नमंसह, वंदित्ता इत्यादि पदों છે, અને આગમનને પ્રકાર બતાવેલ છે એજ પ્રમાણે તે સઘળું કથન અહિં પણ સમજવું શકે પિતાના અવધિજ્ઞાન દ્વારા જ બુદ્વીપમાં સુધર્મ સભામાં બિરાજમાન પ્રભુને જ્યારે જેયા, ત્યારે જોઈને તે જ સમયે શકે ત્યાં આવ્યો. સોળમાં શતકના અંજ ઉદેશામાં શર્કની સાથે તેના આભિગિક દેવનું આગમન ભગવાન પાસે કહ્યું નથી પરંતુ અહિયાં તે કહ્યું છે એ જ વાત 'नवरं अस्थ आभिजोगिया वि अत्थि' मा ५४थी प्रगट ४२६ छे. 'जाव बत्ती सविह नटूविहिं उबदसेइ' हि मावीन तय मत्रीस पानी नाटयतिव मतावी. 'उवदसेता जाव पडिगए' नाटयविधि तीन ते श पाछ। यो त पछी 'भंतेत्ति भगवं गोयमे 8 मापन से प्रभारी समाधन ४रीन गौतम स्वामी 'समणं भगवं महावीरं जाव एवं वयासी" श्रम नगवान् महावीर साभार यावत् सा प्रमाणे पूछयु: मलियां या१५६थी "वन्दते, नमस्यति, वन्दिवा, नमस्यित्वा" त्यादि पह
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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