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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०१ सू०२ चरमाचरमत्वे जीवद्वारम्
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पुच्छा गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे, एवं जान वेमाणिए, सिद्धे जहा जीवें । जीवा णं पुच्छा, गोयमा ! नो चरिमा अचरिमा नेरइया चरिमा वि अचरिमा वि एवं जाव वेमाणिया सिद्धा जहा जीवा | १| आहार सव्वत्थगतेणं सिय चरिमे सिय अधरिमे, पुहुत्ते णं चरिमा वि अरिमा वि। अणाहारओ जीवो सिद्धो य एगतेण वि पुहुत्तेण वि नो चरिमे अचरिमे । सेसडाणेसु एगतपुहुत्तेणं जहा आहारओ |२| भवसिद्धिओ जीवपदे एगतपुहुत्तेणं चरिसे नो अचरिमे, सेसद्वाणेसु जहा आहारओ | अभवसिद्धिओ सव्वत्थ एगत्तपुहुतेणं नो चरिमे अचरिमे । नो भवसिद्धिय नो अभवसिद्धिए जीवे सिद्धेय एगतपुहुतेणं जहा अभवसिद्धिओ | ३ | सन्नी जहा आहारओ, एवं असनी वि, नो सन्नि नो असन्नी जीवपदे सिद्धपदे य अच
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रिमे, मणुपदे चरिमे एगत्तपुहुतेणं |४| सलेस्सो जाव सुक्कलेस्सो जहा आहारओ, नवरं जस्स जा अस्थि । अलेस्सो जहा नो सन्नि नो असन्नी | ५| सम्मगद्दिट्टी जहा अणाहारओ, मिच्छादिट्टी जहा आहारओ, सम्मामिच्छादिट्ठी एगिंदिय विगलिंदियवज्जं सिय चरिमे लिय अचरिमे, पुहुरेण चरिमा वि अरिमा वि|६| संजओ जीवो मणुस्सो य जहा आहारओ, असंजओ वि तहेव, संजया संजए वि तहेव, नवरं जस्स जं अस्थि । नो संजय नो असंजय नो संजयासंजओ जहा नो भवसिद्धिय नो अभवसिद्धिओ | ७| सकसाई जाव लोभकसाई
भ० ७४