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भगवती
टीका - 'एगिदिया णं भंते' इत्यादि । 'एगिदिया णं भंते !" एकेन्द्रियाः खलु भदन्त ! 'सच्चे समाहारा' सर्वे समाहाराः - यमानः- एकरूप आहारो येषां ते समाहाराः किम् ? इति प्रश्नः, भगवानाह - ' एवं जा' इत्यादि । ' एवं ' जहा पढमसए वितिय उदेसए' एवं यथा प्रथमशतके द्वितीयोदेश के 'पुढविकाइयाणं वक्तव्या भणिवा' पृथिवीकायिकानां वक्तव्यता भणिता 'सा चेव एर्गिदियाणं इह भाणिवा' सैव एकेन्द्रियाणामिह वक्तव्यता भणिव्या वित्पर्यन्तमिश्याह'जाव समाज्या समोवनगा' यावत् समायुष्काः समोपपत्रकाः तत्र प्रथमशतकीय बारहवें उद्देशक का प्रारम्भ
पहिले पृथिवी काय से लेकर वायुकायिक तक के जीवों का उपपात प्रकट किया गया है, अब उस १२ वें उद्देशक में एकेन्द्रियादिक जीवों के आहारादिक का निरूपण करना है । सो इसी सबन्ध को लेकर यह उद्देशा प्रारम्भ हुआ है इसका 'एर्गिदिया णं भंते ! इत्यादि पहिला सूत्र है
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'गिदिया णं भते ! सच्चे समाहारा' इत्यादि ।
टीकार्थ - इस सूत्र द्वारा गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है- 'एगिंदिया णं भंते । सव्वे समाहारा' हे भदन्त ! जितने भी एकेन्द्रिय जीव हैं वे सब क्या एक रूप आहार वाले है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ' एवं जहा पढमसए वित्तियउदेलए 'हे गौतम! जैसी प्रथम तक के द्वितीय उद्देशक में 'पुढविकाइयाणं वक्तव्वया भणिया' पृथिवीकायिक जीवों की वक्तव्यता, कही गई है । 'साचेत्र एगिंदियाणं इह माणिवा' वही ખારમા ઉદ્દેશાના પ્રારંભ
પૃથ્વીકાયિકજીવાથી આર’ભીને વ ચુકાય સુધીના જીવેાના ઉપપાતને વિષય પ્રકટ કરવામાં આવ્યા છે. હવે આા ખારમાં ઉદ્દેશામાં એકે ટ્રિય જીવાના આહાર વિગેરેનું નિરૂપણ કરવાનું છે. આ સંબધને લઈને આ ઉદ્દેશાને પ્રારભ કરવામાં આવે છે. આનું પહેલુ સૂત્ર આ પ્રમાણે છે.
'एगिंदिया ण भते ! सव्वे समाहारा' इत्याहि ।
टीडार्थ — मा सूत्रधी गौतमस्वाभीगे प्रभुने मे पूछयु छे - 'एगिदिया. णं भवे ! सव्वे समाहारा' हे लगवान् भेटला मेहेन्द्रिय कवेा छे, ते બધા જ શુ....એકજ પ્રકારના આહારવાળા છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ४ छे है-' एवं जहा पढमसए नितिए उद्देसए' हे गौतम! पडेला शतना श्रील उद्देशामां नेवी रीते 'पुढवीकाइयाणं वत्तव्वया भणिया' पृथ्वी प्रायिक लवाना सभ्भन्धमां स्थन उयु छे 'सा चैव एमिदियाग इह भाणियव्वा' ते ४