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- अमेयचन्द्रिका टीका श० १७ उ०५ सू० १ इशानेन्द्रवक्तव्यता सभा प्रनता हे भदन्त ! ईशानेन्द्रस्य सुधर्मासमा कुत्र विद्यते इति प्रश्ना, भगचानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'जंबुद्दीवे दीवे' जम्बूद्वीपे द्वीपे 'मंदरस्स पन्धयस्स' मन्दरस्य मन्दरनाम्नः पर्वतस्य 'उत्तरेणं' उत्तरेउत्तरस्या दिनीत्यर्थः 'इमीसे रयणप्पमाए पुढवीए' अस्याः रत्नप्रभायाः पृषि. व्याः 'बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ' बहुसमरमणीयात् भूमिभागात् 'उहूं
पांचवें उद्देशे का प्रारंभचतुर्थीउद्देशक के अन्त में वैमानिकों के सम्बन्ध में वक्तव्यताकही है. अब इस पश्चम उद्देशक में ईशानेन्द्र की वक्तव्यता कही जावेगी अतः इसी सम्बन्ध को लेकर यह पञ्चम उद्देश कहा जा रहा है'कहिणं भंते ! ईसाणस्स देविंदस्स देवरन्नो सभा सुहम्मा' इत्यादि ।
टीकार्थ--इस सूत्र द्वारा गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'कहिण भते ! ईसाणस्स देविंदस्त देवरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता' हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज जो ईशान है-उनकी सुधर्मा सभा कहां कही गई है? अर्थात् ईशानेन्द्र की सुधर्मा सभा कहाँ है ? इसके उत्तर में प्रभुने कहा -गोयमा' हे गौतम! 'जवुदीवे दीवे इस जबूद्वीप नामके द्वीप में स्थित मन्दर नामका पर्वत है, उस पर्वत की उत्तर दिशा में 'इमीसे रयणप्प: भाए पुढवीए' इस रत्नप्रभा पृथिवी के 'पहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ' बहुसमरमणीय भूमिभाग से 'उडूं चंदिममूरिय० जहा ठाणपदे०'
ચોથા ઉદેશાના અંતમાં વૈમાનિકોના સંબંધમાં કહેવામાં આવ્યું છે. હવે આ પાંચમાં ઉદ્દેશામાં ઈશાનેન્દ્રના સંબંધમાં કથન કરવામાં આવશે જેથી આ સંબંધને લઈને આ પાંચમાં ઉદ્દેશાને પ્રારંભ કરવામાં આવે છે—
'कहि णं भंते ईसाणस्स देविंदस्व देवरन्नो सभा सुहम्मा' या
टी -मा सूत्रा। गीतमयभाये अनुन मे पूछ्युछ-'कहिण भंते । ईसाणस्य देविंदस्स देवरन्नो सभा सुहम्मा पण्णता' 8 सवान् देवेन्द्र દેવરાજ ઈશાન છે તેમની સુધસભા કયાં કહેવામાં આવી છે અર્થાત્ ઈશાનેન્દ્રની સુધસભા ક્યાં છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કેઃ 'गोयमा! गौतम 'जवूहीवे दीवे' मा मूद्वीपमा रे भ२ (भ3) पर्वत छ ते ५ तनी उत्तर हशामा 'इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए' । २नमा Yीन 'बहुसमरमणिज्जाभो भूमिभागाओ' मसभरमणीय भूमिलाया