________________
भगवतीचे तितम् 'संडासए नियत्तिए संदंशको निर्वतितः, 'चम्मेढे नियत्तिए' चर्मेष्टिकं निवर्तितम् चर्मेष्टकं नाम लोहमयः पवलायतो लोहादि कुट्टनमयोजनको लोहकारोपकरणविशेषः 'मुट्ठिए निबत्तिए' मुष्टिकं निर्वतितम् मुष्टिकं लघुतरो धनः 'हथौडा' इति लोकपसिद्धा, 'अहिगरणी नियत्तिया' अधिकरणी निर्तितः, 'अहिंगरणी खोडी नियत्तिया' अधिकरणी खोडी नितिता यत्र काप्ठे अधि. करणी संस्थाप्यते सा अधिकरणी खोडी कथ्यते, 'उदगदोणी निबत्तिया' उदकद्रोडी निर्वतिता, उदकद्रोणी जलाधारपात्रम् यत्र च तप्तं लोहादिकं शीतली करणाय निक्षिप्यते सा उदकद्रोणी 'द्रोणी कुण्डीति लोकमसिद्धा, 'अहिगरणसाला निवत्तिया' अधिकरणशाला विनिता-अधिकरणशाला लोहपरिकर्मगृहम यत्र गृहे लोहादितापनकार्य सम्पाद्यते लोहशालेत्यर्थः, 'ते विणं जीवा काइ'संडलए निव्वत्तिए' संदंशक-मंडासी पनी है, 'चम्मेदृ निन्वत्तिए' चमें ष्टक बना हैं, चर्मेष्टक नाम घन का है-यह लोहे का बना हुआ होता है. पतला और लम्पा रहता है, तथा इसके द्वारा लोहादिक कूटने का प्रयोजन लुहार का सघता है, यह उसका एक उपकरण विशेष है। 'मुटिए नियत्तिए' मुष्टिक घना है-छोटे हथौडे का नाम मुष्टिक हैं। 'अहिगरणी नियत्तिया' अधिकरणी एरण बना है, 'अहिगरणीखोडी निव्वत्तिया' जिस काष्ठ में एरण गढी रहनी है वह काष्ठ बना है, 'उद्गदोणीनिव्वत्तिया' जल का आधार भूत पात्र बना है, जिसमें गरम लोहे को ठंडा करने के निमित्त डाला जाता है उसका नाम उदकद्रोणी है। द्रोणी नाम कुण्डी का है 'आहिगरणसाला निव्वत्तिया' जिन से लोहशाला बनी है-जिसमें कि लोहादिक का तापन कर्म होता है, 'ते विणं जीवा "संडसए निव्वत्तिए" सासी मनी हाय " चम्मेद्वे निव्वत्तिए" ४ (arg) मन्ये डाय “ मुदिए निव्वत्तिए" भुष्टि४ (या) मनी डाय " अहि गरणी निवत्तिया" मधि४२५-२९ मनी जय " अहिगरणी खोड़ी निव्व त्तिया" aliwi मे aused २७ छ. a als. मन्यु डाय "उदगदोणी निवित्तिया" पा रामवाना माधा२३५ पात्र मन्यु डाय કે જેમાં ગરમ લેખંડને ઠંડુ કરવા ડુબાડવામાં આવે છે તેનું નામ ઉદગद्रोही ले पाए रामवानी नु नाम ही छ. “अहिगरणसाला निव्वत्तिया" नाथी वा मनी डायरे भा सोम भाहिन तपापातु र्य थाय छे. " ते वि णं जीवा काइयाए जाव पंचहि जाव किरि