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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१७ उ०१ सू०२ तालदृष्टान्तेन कायिक्यादिक्रियानि० ३४१
अनन्तरं पूर्वप्रकरणे भूतानन्दस्योद्वर्त्तनादिक्रिया कथितेति क्रियाधिकारादेव क्रिया सूत्रमाह - 'पुरि से णं भंते' इत्यादि ।
मूलम् - पुरिसे णं भंते! तालमारुहइ तालमारुहिता तालाओ तालफलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कइ किरिए ? गोयमा ! ' जावं व णं से पुरिसे तालमारुहइ तालमारुहित्ता तालाओ तालफले पचाइवा पवाडेइवा तावं चणं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढे १ । जेसिं पिणं जीवाणं सरीरेहिंतो तालंफलं निव्वत्तिए ते विणं जीवा काइयाए जाव पंचहिं किरिया हिं पुट्टा २ । अहे णं भंते! से तालफले अप्पणी गरुयत्ताए जाव पच्चोवयमाणे जाई तत्थ पाणाई जाव जीवियाओ ववरोवेइ । तए णं भंते! से पुरिसे कइ किरिए ? गोयमा ! जावं चणं से पुरिसे तालफले अप्पणी गरुयत्ताए जाव जीवियाओ ववरोवेइ तावं से पुरिसे काइयाए जाव पउहिं किरियाहि पुट्ठे ३ । जेसिं पिणं जीवाणं सरीरेहिंतो ताले निव्वत्तिए ते वि णं जीवा काइयाए जाव चउहिँ किरियाहिं पुट्ठा ४ | जेसि पि f जीवाणं सरीरेहितो तालफले निव्वत्तिय ते त्रि णं जीवा काइयाए जाव पंचहिं हिरियाहि पुट्टा ५ । जे विय से जीवा अहे वीससाए पंचचोवयमाणस्स उवग्गहे वहति ते वियणं जीवा कोइचाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा ६। पुरिसे णं भंते! रुक्ख-. स्स मूलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कइ क्रिरिए ? गोयमा ! करके सिद्ध होगा, वुद्ध होगा, मुक्त होगा, परिनिर्वात होगा और समस्त दुःखों का नाश करेगा ॥ सू० १ ॥