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भगवती सूत्रे
एर्गिदियपरसा अहवा एनिंदियपएमा वि बेदियाण य परसा २' एवं त्रीन्द्रियादारभ्य अनिन्द्रियान्तेष्वपि प्रदेशविपये एवमेव विचारः। तथा - 'जे अजीवा ते दुविधा पन्नता तं जहा रूबी अजीवा य अरूवी अजीवा य । जे रूत्री अजीवा ते चउन्विहा पन्नाचा तं जहा - संत्रा जाव परमाणुपोग्गला, जे अरूत्री अजीदा ते सत्तविहा पत्ता तं जहा नो धम्मत्थिका धम्मत्थिकायस्स देसे १ धम्मत्थिकायस्स पएसा २ एवं अस्थिकास व आगासत्यिकायस्स वि अद्धासमये अद्धासमयो मनुष्य
में भी जानना चाहिये । तथा-'जे जीवपएसा ते नियमा एगिंदिय परसा अहवा एगिंदियपएसा वि वेई दिवस्स पएसा १, 'जो वहां जीव के प्रदेश हैं वे नियम से एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं अथवा एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश भी हैं और एक वेइन्द्रिय. जीव के प्रदेश हैं १ अहवाएकेन्द्रियों के प्रदेश हैं और अनेक वेहन्द्रियों के देश हैं २, इसी प्रकार का विचार तेइन्द्रिय से लेकर अनिन्द्रियान्ततक के जीवों में भी प्रदेश को लेकर कर लेना चाहिये । तथा- 'जे अजीवा ते दुबिहा पन्नत्ता तं जहा - रूबी अजीवा य, अरूत्री अजीवाय जे रूवी अजीवा ते चत्रिहा पन्नता, तं जहा-खंधा जाव परमाणु योग्गला, जे अरुवी अजीवा ते सत्तविहा पण्णत्ता तं जहा-नो धम्मत्थिकाए-धम्मत्थिकायरस देसे १, भम्मत्थिकायस्स पएसार, एवं अहम्मत्थिकायस्स वि आगासत्धिकायस्स वि अद्धासमए' अजीव है वे रूपी अजीव और
"जे जीवपएसा ते नियमा पनि दियपएसा अहवा एगिदियपएसा वि वेइंदियस्स सा" त्यांना प्रदेश छे ते नियमथी मेहेन्द्रिय भवाना अद्देश। छे. અથવા એકેન્દ્રિય જીવાને પ્રદેશ પણ છે. અને એક એ ઇન્દ્રિય જીવાના अदेश छे (१) "अहवा" - मेन्द्रिय कवनो प्रदेश छे भने भने मेन्द्रि ચાના પ્રદેશ છે (ર) આ રીતને વિચાર ત્રશુ ઇન્દ્રિયથી લઈને અનિન્દ્રિય लवाना विषयभां पयु अहेशने सहने समल देवे। तथा "जे अजीवा ते दुविधा पन्नता - तं जहा - रूवि अजीवाय, अरूवि अजीवाय जे रूवि अजीवा ते चव्विा पन्नत्ता, तं जहा खंधा जाव परमाणुपोगाला जे अरूवि अजोवा ते सत्तविहा पण्णत्ता- जहा - नो १ धम्म त्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे (१) धम्मत्थि कायस्स परसा (२) एवं अहमत्थिकायरस वि, आगासत्थिकायस्व वि अद्धा स्मये ( १ ) - ३५ सलवाने ख३पि लव मे लेहथी लव मे