________________
२७४
भगवती
स्यैक मतररूपतया लोकदन्तकाभावेन देशानेकत्वस्या कारणत्वादिति अतएवोच्यते एवं मझिल्लविरहि मो जात्र पंचेंदियाणं' एवं मध्यमविरहितो यावत् पञ्चेन्द्रियाणाम् अत्र यावत्सदेन त्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियानिन्द्रियाणां ग्रहणं भवतीति एकेन्द्रियवत् हीन्द्रियादारभ्य चतुरिन्द्रियपर्यन्तं जीवेषु त्रित्रसंयोगिको भङ्गो वाच्यस्तत्र मध्यमभङ्गः 'एकेन्द्रियदेशाथ अनिन्द्रियदेशाश्च द्वीन्द्रियस्य च देशाः ' इत्याकारको वक्तव्य इति भावः । लोकस्योपरितनचरमान्ते जीवदेशविषयक विचारं कृत्वा प्रदेशविचाराय प्राह- 'जे जीव पसा' इत्यादि । 'जे जीव एसा ते नियमं एर्गिदियपएसाय अर्णिदियपएसाय' ये जीवप्रदेशास्ते निय क्योंकि कि प्रदेश का हानिवृद्धि द्वारा हुई लोकदन्तक विषमता से नहीं है । अतः अनेक प्रतरात्मक पूर्वचरमान्त के जैसा वहां अनेक देश नहीं होते हैं । अतः लोक का उपरितन वरमान्त एक प्रतर रूप होने के कारण लोकदन्तक विषयता के अभाव से देशों की अनेकता होने का वहां कोई कारण नहीं है । इसलिये 'एवं मझिल्लविरहिओ जाव पंचिदियाण' ऐसा कहा गया है। यहां यावत् शब्द से तेइन्द्रिय और चौइन्द्रिय जीवों का ग्रहण हुआ है । इस प्रकार एकेन्द्रिय जीव के जैसा दीन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय पर्यन्त जीवों में त्रिक संयोगिक भंग कह लेना चाहिये वहां मध्यम संग' एकेन्द्रिय देशाच, अनिन्द्रिय देशाश्च द्वीन्द्रियस्य च देशाः ' जो कि इस प्रकार से है । नहीं कहना चाहिये । इस प्रकार लोक के उपरितन चरमान्त में जीवदेश विषयक विचार करके अब प्रदेश विषयक विचार करने के निमित्त ' जे जीवपएसा ते नियम एपिएसा य अर्णिदियपएसाय' ऐसा कहा गया है। इसमें
પ્રતરાત્મક પૂર્વ ચરમાન્તની માફક ત્યાં અનેક દેશ હાતા નથીજેથી લાની ઉપરના ચરમાન્ત એક પ્રતર રૂપ હોવાના કારણે લેાકના અતના અભાવથી हेशानी अनेङता है|वानु त्यां अर्ध रशु नथी मेथी "एव मझिल्लविर हिओ जाव पंचिदियाणं” थे प्रभा अडेवासां भाव्यु छे. मडियां यावत् શબ્દથી તેઈન્દ્રિય, ચૌઇન્દ્રિય અને અનીન્દ્રિય જીવાનુ ગ્રહણ થયું છે. આ રીતે એકેન્દ્રિય જીવેાની માફક દ્વીન્દ્રિય જીવાથી લઈને ચાર ઇન્દ્રિય પતના જીવેામાં ત્રિક સ’ચેાગી ભ ́ગ કહેવા જાઈએ ત્યાં મધ્યમ ભગ ठे 'एकेन्द्रियदेशाच, अनीन्द्रियदेश', द्वीन्द्रियस्य च देशः' मा प्रभाछे या रीते લેાકના ઉપરના ચરમાન્તમાં જીવ દેશ વિષયના વિચાર કરીને હવે જીવ પ્રદેશ विषयने विचार उरतां सूत्रार डे हैं, 'जे जीवपएसा ते नियमं एर्गिदिय पसाय अनि दियपएसाय' मे अभागे उह्युं छे. तेमां मे प्रभा पशु ४२वाभां