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भगवतीयो है' ऐसा जो कहा गया है उसका तात्पर्य ऐसा है कि जिस शरीर में रहते हुए उस जीव ने स्वप्न देखा है उसी शरीर से वह मुक्ति प्राप्त करेगा-अर्थात् ऐसा स्वप्न दृष्टा जीव चरम शरीरी होता है। वह गृहीत शरीर को छोडकर फिर अन्य शरीर धारण नहीं करता । 'जाव अंतं करेइ' में जो यह यावत् पद आया है उससे 'बुद्धयते, मुच्यते, परिनिर्वाति, सर्वदुःखानाम्' इन पदों का ग्रहण हुआ है। 'सुविणते' का भाव स्वप्न के अंतिमभाग में ऐसा है, गाय
आदिकों को बांधने की जो रस्सी होती है उसका नाम दामनी है। 'किण्हलुत्तगं वा जाव सुक्मिल्लसुसगं वा' में जो यावत् पद आया है उससे यहां 'नील, पीत, रक्त. वर्णवाले डोरों का ग्रहण हुआ है। 'सरथंभ' में तृणविशेष का नाम शर है और शरकी जो ऊर्वीकृत राशि है उस का नाम ारस्तम्भ है। इसी प्रकार से वीरणस्तम्भ आदिकों में भी समझ लेना चाहिये । बल्लीनाम लता का है । क्षीर नाम दूध से पूरित हुए कुम्भ का नाम क्षीरकुम्भ है। इसी प्रकार से दधिकुम्भ घृतकुम्भ के विषय में भी समझना चाहिये। 'सुराविकटकुम्भ' का तात्पर्य सुरारूप विकट-मद्ययुक्त जल से भरा हुआ जो कुम्भ है वह सुराविकट कुम्भ है अर्थात् मद्ययुक्त जल से पूर्ण कुम्भ का नाम જાય છે, એવું જે કહેવામાં આવ્યું છે તેનું તાત્પર્ય એવું છે કે જે શરીરમાં રહેલા તે જીવે સ્વપ્ન જોયું છે એજ શરીરથી તે મુકિત પામશે અર્થાત એ રીતનું સ્વપ્ન જોનાર જીવ ચરમ શરીરી હોય છે તે ગૃહીત શરીરને છોડીને भी शरीर धारण ४२त नथी.. 'जाव अंत करेइ' भा २ मा यावत् ५६ भाव्यु छ तनाथी 'बुध्यते, मुच्यते, परिनिर्वाति सर्वदुःखानाम्' से पह! अर थया छ. 'सुविणते' से पाय मानना मत भागमा से प्रमाणे छ गाय विशे३२ मांधवानी २ होश डाय छे, तेनु नाम हमनी छे. 'किण्हसु तगंवा जाप सुकिल्लसुत्तगं वा' पायमा २ यावत् ५४ माथुछ तेनाथी 'tla' पीत, पीना भने २४त-रात व महारानु अहए थयुं छे. 'सरथंभं' એ વાકયમાં આવેલ “રા' એ શબ્દ તૃણ વિશેત્રને વાચક છે. અને એ શરનો જે ઢગલે તે સરસ્તંભ છે એ જ રીતે વીરતંભ વિગેરેમાં પણ સમજી લેવું વલી નામ લતાનું છે. દૂધથી ભરેલા કુંભનું નામ ક્ષીરકુંભ છે એ જ રીતે દહીંથી ભરેલ કુંભ, દધિકુંભ, ઘીથી ભરેલ કુંભ વૃતકુંભના વિષયમાં ५ सभ देवु 'सुराविकटकुम्भम्' नु तात्पर्य सुरा३५ विट-सुरामिश्रित જલથી ભરેલે જે કુંભ છે તે સુરાવિકટ કુંભ છે. અર્થાત મદ્યવાળા જળથી